धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

आत्मा की आराधना का महापर्व है- पर्युषण

जैन धर्म त्याग प्रधान, संयम प्रधान और समता प्रधान धर्म है। यह न केवल जैन धर्मावलंबियों के लिए अनुकरणीय है अपितु मानवता में विश्वास रखने वाले प्रत्येक मनुष्य के लिए अनुसरणीय है। तभी तो इसे जन धर्म और मानव धर्म भी कहा जाता है। जैन धर्म का सबसे बड़ा महापर्व है- पर्वाधिराज पर्युषण। यह पर्व है आत्मा की आराधना का, प्रमाद के विसर्जन का, कषायों के त्याग का, अज्ञान को दूर करने का।
पर्युषण का अर्थ
           पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है- सम्पूर्ण रूप से अपनी आत्मा में अवस्थित होना, समभाव में विचरण करना। यह शब्द परि उपसर्ग, वस धातु और अन् प्रत्यय, इन तीनों के संयोग से निष्पन्न हुआ है। परि समन्तात् समग्रतया उषणं वसनं निवास करणं अर्थात अपनी आत्मा में रमण करना। भगवान महावीर ने चातुर्मास के 50 दिन बीतने पर और 70 दिन बाकी रहने पर पर्युषण पर्व की आराधना की, ऐसा समवायांग सूत्र में उल्लेख है। तिथियों की घट-बढ़ के कारण कभी-कभी इधर 49 दिन और उधर 71 दिन हो जाते हैं।
पर्युषण पर्व 8 दिन का होता है। सम्वत्सरी महापर्व की सम्यक् आराधना के लिए सात दिन तक तप, जप, ध्यान, मौन, स्वाध्याय, प्रवचन श्रवण, सामायिक, संवर एवं पौषध आदि की नियमित आराधना करने से आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है।यह पर्व मात्र जैन संस्कृति का ही नहीं, अपितु मानव संस्कृति का पर्व है।
पर्युषण काल में साधना
पर्युषण काल के दौरान प्रत्येक जैन श्रावक-श्राविका को अपने क्षेत्र में विराजित साधु-साध्वियों के प्रवचन श्रवण का लाभ लेना चाहिए। इन दिनों में अधिक से अधिक सामायिक करनी चाहिए, सामायिक में धार्मिक पुस्तकों का स्वाध्याय, नमस्कार महामंत्र का जाप, मौन और ध्यान आदि करने चाहिए। इन दिनों में रात्रि भोजन का सर्वथा परित्याग करना चाहिए।खाने में द्रव्य संयम के साथ-साथ सचित्त एवं जमीकंद का पूर्णतः परित्याग करना चाहिए।
          इन आठ दिनों में सिनेमा, नाटक, टीवी देखना, ताश खेलना आदि का अगर पूर्ण त्याग नहीं कर सकते तो समय सीमा अवश्य तय करनी चाहिए। जैन धर्म में मद्य, मांस, शहद और मक्खन, इन चार चीजों को महाविगय माना जाता है, अतः इनका सेवन वर्जित है। इनमें भी प्रथम दो पूर्णतया त्याज्य है, अन्य दो का दवाई के रूप में सेवन किया जा सकता है। इन दिनों प्रत्येक श्रावक- श्राविका को श्रावक के बारह व्रतों का पालन करना चाहिए। अगर पूर्ण रूप से उनका पालन नहीं कर सकते हैं तो श्रावक के 14 नियम तो रोज लेने चाहिए, जिससे समस्त सांसारिक वस्तुओं के उपभोग की सीमा निश्चित हो जाती है और कर्मों के बन्धन से छुटकारा मिलता है। श्रावक के 14 नियम इस प्रकार हैं-
1- सचित्त- सचित्त अर्थात जिस पदार्थ में जीव राशि है। इसके अन्तर्गत सचित्त पदार्थों के सेवन की दैनिक मर्यादा रखी जाती है। जैसे- कच्ची हरी सब्जियां, सलाद, कच्चे फल, सादा नमक, कच्चा पानी, कच्चा धान आदि का सम्पूर्ण त्याग या संख्या का निर्धारण करना। (3,5,7 आदि)
2- खाने-पीने की वस्तुओं की मर्यादा, इसमें पदार्थों की संख्या का निर्धारण किया जाता है। भिन्न-भिन्न नाम व स्वाद वाली वस्तुएं जैसे- खिचड़ी, रोटी, दाल, शाक, मिठाई, पापड़, चावल  व अन्य खाद्य पदार्थों की मर्यादा करना, 11,15,21आदि।
3- विगय- अभक्ष्य विगय जैसे- मदिरा, मांस, शहद और मक्खन का सर्वथा त्याग होना चाहिए। इनमें प्रथम दो पूर्णतया त्याज्य हैं। अन्य दो शहद और मक्खन दवाई के रूप में प्रयोग की जा सकती हैं।
भक्ष्य विगय छः हैं। तेल, घी, दही, दूध, शक्कर/गुड़ तथा घी या तेल में तली हुई वस्तुएं विगय के अन्तर्गत आती हैं। इनका यथाशक्ति त्याग करना या रोज कम से कम एक विगय का त्याग करना।
4- उपानह- जूते-मौजे, चप्पल आदि पांव में पहनने वाली चीजों की मर्यादा करना, 3,5,7 आदि।
5- तम्बोल- मुखवास के योग्य पदार्थों- पान, सुपारी, इलायची आदि का त्याग करना या उनकी सीमा तय करना।
6- वत्थ- पहनने-ओढ़ने के वस्त्रों की दैनिक मर्यादा रखना, जैसे आज़ मैं इतने जोड़ी कपड़ों से ज्यादा नहीं पहनूंगी।
7- कुसुम- पुष्प, तेल, इत्र, अगरबत्ती आदि सुगंधित पदार्थों की मर्यादा करना।
8- वाहन- रिक्शा, स्कूटर, कार, बस, ट्रेन आदि के दैनिक उपयोग की मर्यादा करना।
9- शयन- शय्या, आसन, कुर्सी, बिछौना, पलंग आदि के दैनिक उपयोग की सीमा तय करना।
10- विलेपन- केसर, चंदन, उबटन, साबुन, तेल, क्रीम और पाउडर के उपयोग की सीमा करना।
11- ब्रह्मचर्य- परस्त्री का सर्वथा त्याग, स्वस्त्री के साथ मर्यादा का संकल्प करें।
12- दिशा- दसों दिशाओं में अथवा किसी एक दिशा में इतने किलोमीटर से अधिक दूर जाने का त्याग, जैसे 50 या 100 किमी., आपातकालीन आगार रखा जा सकता है।
13- स्नान- प्रतिदिन स्नान और वस्त्र प्रक्षालन के लिए पानी की मर्यादा रखना जैसे एक बाल्टी या उससे अधिक।
14- भत्त नियम- प्रतिदिन अन्न-पानी आदि चारों आहारों का तोल निश्चित करना। जैसे, दिन में दो-तीन बार खाना और इतने से अधिक नहीं खाना।
पर्युषण महापर्व का समापन मैत्री दिवस या क्षमापना दिवस के रूप में होता है। इस दिन सभी श्रावक-श्राविकाएं और साधु-साध्वियां एक-दूसरे से शुद्ध अंत:करण से क्षमायाचना करते हैं।
— सरिता सुराणा

सरिता सुराणा

पति : बिमल सुराणा शिक्षा : बी. ए. ( राजस्थान विश्वविद्यालय , जयपुर ) लेखन विधा : कहानी , व्यंग्य , निबंध , लघुकथा , कविता , संस्मरण , पत्र - लेखन एवं समीक्षा आदि । प्रकाशन : कादम्बिनी , सरिता , गृहशोभा , संकल्य , पुष्पक , भास्वर - भारत , अणुव्रत , युवादृष्टि , जैन भारती , राष्ट्रधर्म , प्रेरणा - अंशु , सरस्वती सुमन , इंडिया टुडे आदि । जागती जोत , हथाई एवं नैणसी आदि राजस्थानी भाषा की पत्रिकाएं । राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण एवं लोकमत आदि समाचारपत्रों में रचनाएं प्रकाशित।अनेक ऑनलाइन पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। पुरस्कार : कादम्बिनी युवा व्यंग्य प्रतियोगिता 2004 , प्रथम पुरस्कार युद्धवीर स्मारक कहानी प्रतियोगिता 2004 , प्रथम पुरस्कार युद्धवीर स्मारक व्यंग्य प्रतियोगिता 2005 , 2007 , प्रथम एवं द्वितीय पुरस्कार युद्धवीर स्मारक कविता प्रतियोगिता 2008 प्रथम पुरस्कार युद्धवीर स्मारक लेख प्रतियोगिता 2009 एवं 2013 प्रथम एवं द्वितीय पुरस्कार महारानी झांसी पुरस्कार , 2015 , भारतीय संस्कृति निर्माण परिषद द्वारा अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा आयोजित " आचार्य श्री महाश्रमण व्यक्तित्व एवं कृतित्व " निबंध प्रतियोगिता - द्वितीय पुरस्कार, 2012 अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता " क्या कहता है जैन लोगों " में द्वितीय पुरस्कार प्राप्त । अणुव्रत समिति , नई दिल्ली द्वारा नशामुक्ति पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त जैन विद्या विशारद परीक्षा तथा आगम मंथन प्रतियोगिता ( सूयगडो एवं दसवेआलियं ) में विशिष्ट पुरस्कार । कई अन्य लेख एवं पत्र पुरस्कृत । प्रकाशित कृति- ' मां की ममता ' कहानी-संग्रह, काव्य संग्रह एवं लघुकथा संग्रह प्रकाशन के क्रम में। विशेष- आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर काव्य पाठ, परिचर्चा में शामिल। संस्थाओं से संबद्धता : कादम्बिनी क्लब , हैदराबाद , संगोष्ठी संयोजिका सांझ के साथी साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति , हैदराबाद अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन ,प्रयाग , आंध्र प्रदेश महिला विभाग , आजीवन सदस्य ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, नई दिल्ली, सदस्य अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन, सदस्य भारतीय जैन संघटना , महिला विभाग जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महिला मंडल , हैदराबाद , आजीवन सदस्य जैन सेवा संघ , महिला विभाग , आजीवन सदस्य जैन वूमेन फोरम , हैदराबाद-सिकन्दराबाद मारवाड़ी महिला संगठन, आजीवन सदस्यता। अन्य अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं से संबद्धता। पूर्व सब एडिटर डेली हिन्दी मिलाप, हैदराबाद। सम्प्रति : फीचर एडिटर डेली 'शुभ लाभ', हैदराबाद Email :[email protected] Mob : 9177619181