साम्प्रदायिक सद्भावना प्रतिक : लोक देवता बाबा रामदेव
जन-जन के आस्था और साम्प्रदायिक सद्भावना के प्रतीक बाबा रामदेव का मेला राजस्थान का कुंभ कहा जाने वाला सावन-भादवा लगते ही शुरू हो गया हैं। इस समय आस्था नगरी, बाबा रामदेव समाधी स्थल रूणीचा यानि रामदेवरा और अवतार धाम जन्म स्थली उण्डू काशमीर में मेला परवान पर चढा हुआ हैं। श्रध्दालुओं, पद यात्रियों व संघो की नाचते-गाते व डीजे साऊंड पर झूमते हुए दर्शनार्थ जा रहे हैं। बाबा रामपीर के जयकारों के साथ गुंजाइमान सभी सड़क मार्गों पर रेलमपेल है। प्रशासन भी माकूल व्यवस्था, सुविधाओं के साथ सेवा में लगा है। निज मंदिर में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है, सुव्यवस्थित ढंग से कई किलोमीटर तक लंबी कतारों श्रध्दालु दर्शन करके अपनी मन्नते मांग रहे है।
बाबा रामदेव जी प्रसिद्ध लोक देवता हैं इनका जन्म अवतार स्थल बाड़मेर जिले के शिव उपखंड के उण्डू काशमीर (रामदेरिया)में अजमल जी के घर विक्रम संवत 1409 चैत्र शुक्ल पंचमी के दिन हुआ था। कलयुग के अवतारी बाबा रामदेव ने अपने शैशव काल ही दिव्य चमत्कारों से देव पुरूष की प्रसिद्धि पा ली थी। प्रचलित लोक गाथा के अनुसार बाबा रामदेव ने अपने बाल्यकाल में ही माता की गोद में दूध पीते हुए चूल्हे पर से उफनते हुए दूध के बर्तन को नीचे रखना, कपड़े के घोड़े को आकाश में उठाना, स्वारथिये नाम के व्यक्ति को सर्पदंश से मरने के बाद वापस जिंदा करना आदि कई चौंकाने वाले चमत्कार है। ज्यों-ज्यों रामदेव जी किशोरावस्था में प्रवेश कर रहे थे, उनके दैविक पुरूष होने के चर्चे दूर-दराज तक फैल रहे थे। एक प्रचलित गाथा के अनुसार बाबा रामदेव श्री कृष्ण अवतार थे जो भैरव नामक दैत्य राक्षस के आंतक को मिटाने के लिए पृथ्वी लोक पर अवतरित हुए थे। भैरव नें अपने आंतक से कई नगर-कस्बे उजाड़ दिये थे मानव सहित जीवों का संहार करता था। एक दिन बाबा रामदेव जी अपने साथियों के साथ गेंद खेल रहे थे, खेल-खेल में गेंद में को बहुत दूर फैंक दिया था कि सभी साथियों ने ढूंढ लाने मे असमर्थता जताते कहा कि आपको ही लानी पड़ेगी भैरव का भय है। बाबा रामदेव ने गेंद लाने के बहाने अपनी राजधानी उण्डू काशमीर से बाहर निकल कर (पोढी) वर्तमान पोकरण की के ऊपर स्थित साथलमेर आ कर भैरव के अत्याचारों से लोगों को मुक्त करवाना था। बालक रामदेव को सुनसान पहाड़ी पर देखकर वहां धूना लगाये योगी गुरू बालीनाथ ने कहां बालक! तूं कहा से आया हैं आया जहां वापस लौट जा, रात को भैरव राक्षस आएगा,और आदम खोर राक्षस तुझे खा जाएगा। तब बालक रामदेव ने रात का हवाला देते हुए वहां रूकने की प्रार्थना की तो गुरू नें अपनी कुटिया के कोने में में गुदड़ी ओढाकर चुपचाप सोने को बोला। अर्द्धरात्रि के समय राक्षस भैरव आ गया गुरू बालीनाथ को बोला कि तेरी कुटिया में मनुष्य गंध आ रही है। इस पर गुरू ने कहा कि हे! भैरव यहां तो तुने बारह-बारह, चौबीस कोस की परिधि में मनुष्य तो क्या पक्षी को छोड़ा नहीं है तो कहां से आएगा, भैरव क्रोध में आकर गुरूजी से बहस करने लगा बोला नहीं बताया तो तुझे खा जाऊँगा इस पर बालक रामदेव ने सोचा कि दुष्ट कहीं गुरू को हानि ना पहुंचा दें ऐसा सोच अपना पैर हिलाया। भैरव की नजर गुदड़ी पर पड़ गई और हटाने हेतु खींचने लगा। बाबा रामदेव जी ने अपने चमत्कार से गुदड़ी द्रोपदी के चीर की तरह लंबी कर दी यह देख गुरू सोचा यह सामान्य बालक नही कोई दिव्य पुरुष है। इधर गुदड़ी को खींचते-खींचते हांफ गया और थक कर भागने लगा तो रामदेव जी उठकर गुरू से आज्ञा लेकर पीछाकर भैरव राक्षस का वध कर उसके आंतक से मुक्त कराया। भैरव के निवास भैरव गुफा से उत्तर दिशा में कुआ खुदवाया और रूणीचा(रामदेवरा)गांव बसाया। इसी तरह उनके चमत्कारों की चर्चा दूर-दराज तक फैल गई थी। चमत्कार की चर्चा मक्का(सउदी अरब)पहुंची तो वहां से पांच पीर मिलने व चमत्कार की परीक्षा लेने पहुंचे। बाबा रामदेव जी ने उन पीरों को अपने बर्तन कटोरे मक्का से लाकर चमत्कार दिखाया इस पर उन्होंने बाबा रामदेव को पीर की उपाधि दी। भक्त उन्हे प्यार से रामसा पीर, रामापीर कहते हैं। बाबा रामदेव जी हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक भी माने जाते हैं।उन्होंने अपने जीवन काल मे अपने अनेक चमत्कार दिए और पूरा जीवन में रूढ़िवादी और छुआछूत का घोर विरोध किया। शोषित, गरीब, और पिछड़े लोगों के बीच बिताया। बाबा रामदेव जी को भगवान् विष्णु अवतार कृष्ण के अंश अवतार माना जाता है। बाबा रामदेव दिव्य पुरूष होने के साथ एक महान समाज सुधारक और अछूतोध्दारक भी थे। उस समय अस्पृश्यता एवं सांप्रदायिकता ने समाज को बुरी तरह से जकड़ रखा था। बाबा रामदेव जी ने सभी को गले लगाया उनके रहकर भजन सत्संग करना पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों का उदार किया सामाजिक कुरीतियों को मिटाने का भरकस प्रयास किया। बाबा रामदेव जी ने अपने तैंतीस वर्ष की अल्प आयु तक अनेक चमत्कार और समाज सुधार के कार्य कर वर्तमान रामदेवरा के रामसरोवर की पाल पर भादवा सुदी एकादशी विक्रम संवत 1442 को जीवित समाधि ले ली। समाधि के निकट वर्ष 1931में बीकानेर के महाराज गंगासिहं ने मंदिर का निर्माण करवाया था। आज यहां बहुत बड़ा भव्य मंदिर है। प्रतिवर्ष लगने वाले मेले में पूरे भारत वर्ष से लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शनार्थ आते है। बाबा रामदेव जी साम्प्रदायिक सद्भावना के प्रतीक है क्योंकि हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग अपना आराध्य देवता मानते है। मेले के दौरान विभिन्न सामाजिक संगठन और ट्रस्ट स्वयंसेवी संस्थाए दर्शनार्थी श्रध्दालुओं के लिए नि:शुल्क भोजन,नाश्ता,पानी और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाते हैं। प्रशासन की माकूल सुरक्षा व्यवस्था व कानून व्यवस्था के बीच इस मेले का आयोजन किया जाता है कि सभी श्रध्दालु भक्त शांति से श्रध्दा भावना सहित अपने आराध्य देव के दर्शन लाभ प्राप्त कर सके।
सभी की बाबा रामदेव जी मनोकामना पूरी करे ऐसी हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
जय बाबा रामदेव जी !
— नायब सुबेदार रावत गर्ग उण्डू