मुक्तक
“मुक्तक”
गैरों ने भी रख लिया, जबसे मुँह में राम।
शुद्ध आत्मा हो गई, मिला उचित अभिराम।
जिह्वा रसमय हो गई, वाणी हुई सुशील-
देह गेह दोनों सुखी, राघव चित आराम।।
दर्शन कर अवधेश के, तरे बहुत से लोग।
राम जानकी मार्ग पर, काया रहे निरोग।
निर्भय होकर चल पड़ो, अंधेरी हो रात-
मंजिल मिल जाती सुबह, भागे तम का रोग।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी