लघुकथा – पुस्तकें
“हिन्दी साहित्य का सम्मान उत्तम सृजन के लिये आपको मिला है! कैसा लग रहा हैं इस सम्मान को पाकर ?
“मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा हैं इस सम्मान को पाकर”!
“मेरी माँ का बहुत बड़ा योगदान हैं! जब मैं सात साल की थी, तब स्कूल में गर्मी की छुट्टियाँ होने पर, माँ मुझे शहर की लाइब्रेरी में ले गयी थी और वहाँ की सदस्यता दिला दी थी! उन्होने रोजाना पुस्तकें लाकर, मुझे कहानी पढकर सुनानी शुरू की थी!” मुझे रोचक लगने लगा, तब फिर अलग – अलग विषयों पर पुस्तकें लाकर मुझे पढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया, माँ ने समझाया था कि बेटी किताबें एक बहुत बड़ी दुनिया है …।
इनमें संस्कार, संस्कृति और देश काल की बातें हैं,.. इतिहास, भूगोल और भी अनेक विषयों की जानकारी हैं, इनके साथ व्यक्ति कभी भी अकेलापन महसूस नही कर सकता, इनसे तुम्हारे व्यक्तित्व का विकास होगा।
इस तरह किताबों को पढने की आदत होने पर, पुस्तकों के प्रति मेरा लगाव बढता चला गया। खेल खेल में मेरा सामना माँ ने पुस्तकों की दुनिया से करा दिया था। मुझें देखकर मेरे साथी और बच्चे भी लाइब्रेरी से जुड़ गये थे और हम सब पुस्तकों का आदान प्रदान करने लगे। जब पुस्तकें हमारे पास बहुत जमा हो गयी तब हम सभी लोगों ने मिलकर एक साझा लाइब्रेरी बना ली थी।
अब लाइब्रेरी ने बड़ा रूप ले लिया हैं जिसमें अलग अलग विषयों में पुस्तकें हैं। इसको सम्भाँलने में मेरे सभी साथी सहयोग देते हैं…।
“आप अपने आने वाले उपन्यास के बारे में कुछ बताना चाहेगी ” पत्रकार ने पूछा।
“मेरा आने वाला उपन्यास बालकों के लिये हैं, क्योंकि बाल साहित्य पर बहुत कम लिखा गया है, किताबें पढ़ना एक अच्छी आदत हैं बचपन से ही इसकी आदत होनी चाहिए। माता पिता और दोस्तों को चाहिए कि उनके जन्मदिवस पर पुस्तकें ही उपहार में दे”। ताकि उन लोगों में पुस्तकें पढ़ने के साथ – साथ उनके व्यक्तित्व का विकास हो।
— बबिता कंसल