कविता

दर्द

अब्र ए दर्द जब दिल पर घुमड़ आते हैं.
लाख रोके कोई पलकों को नम कर जाते हैं.
बहुत मुश्किल है दीवार ए सब्र को महफूज रखना.
दर्द बेइंतहा हो तो कांच से बिखर जाते हैं
बहुत सोचा कि दिल की बात दिल में ही रहे
तेरी चाहत का जादू ऐसा लब खुद ही थिरक जाते हैं

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल पिछले 34 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वे अमर उजाला, डीएलए और हरिभूूमि हिंदी दैनिक में भी अहम पदों पर काम कर चुके हैं। वर्तमान में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी के जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। वे नियमित रूप से ब्लाग लेखन का काम भी करते हैं।