पहले “राम” बन
हे राम !
उस सीता की बात न धर
तू अपनी सीता की बात कर ।
सच है !
कभी सीता की चोरी
हुई थी पंचवटी से ,
पर अब तुम्हारी सीता चहुँ ओर से
भयावह पंचवटी से घिरी है ।
आज तुम्हारा भाई से
लक्ष्मण नहीं
न पर्णकुटीद्वार पर
लक्ष्मणरेखा नहीं ,
क्योंकि
तुम्हारी सीता में
तुम्हारे लक्ष्मण ने तुम्हें देखा नहीं ।
इसलिए ,
पहले ” राम ” बन
तब कहीं तू बचा पाएगा
अपनी सीता को ” जगेश आतंकानन ” से ।