लावणी छन्द गीत – हां! मृत्यु से प्रीत होगी
जब हारेंगी श्वास जीव की ,मृत्यु की तब जीत होगी ।
आत्मा हँस कर देह बिसारे ,मृत्यु की मनमीत होगी ।
कुछ भी रूप धरे मृत्यु किन्तु ,डर कैसा घबराना क्यों ।
मृत्यु जन्म है आत्म-तत्व का ,हा-हा कार मचाना क्यों ।
मृत्यु अटल है स्तय शाश्वत ,यही काल की रीत होगी ।
जब हारेंगी श्वास जीव की, ,मृत्यु की तब जीत होगी ।
जीना जीवन की सार्थकता, क्या यह मिले प्रमाण कहीं ।
खण्डित,क्षण भंगुर सा जीवन है,कब तक रहते प्राण यहीं।
तनिक मृत्यु पर क्षोभ नहीं जो ,मृत्यु अमर संगीत होगी ।
जब हारेंगी श्वास जीव की, ,मृत्यु की तब जीत होगी ।
जो जीवन का शिल्प समझते ,मृत्यु पर उपकार उनका ।
सुख पूर्वक सन्देह रहित ही ,हर लक्ष्य साकार उनका ।
सहज मृत्यु का वरण करें वह ,हां! मृत्यु से प्रीत होगी ।
जब हारेंगी श्वास जीव की, ,मृत्यु की तब जीत होगी ।
— रीना गोयल ( हरियाणा)