लोग
मौसम की तरह बदल जाते हैं अब लोग.
इरादतन वो कर रहे शायद नहीं ये संयोग
सुना था गुफ्तुगू ख्वाबों में भी हो जाती है
ये बात और है कि ऐसा कर पाते हैं चंद लोग
वैसे चाह की राह में रोड़ा नहीं कोई बन सकता.
इरादा पक्का हो तो मिलन का सबब बन सकता.
चाह की टीस तरंगों की मानिंद है प्यारे
वो प्रिय तक संदेशे पहुंचा देती है सारे
— उमेश शुक्ल