मेरा आइना
मेरा आइना मुझसे अब मेरी पहचान मांगता है
शायद मुझसे ज्यादा आइना मुझे पहचानता है
बालों की खोती कालिख उभरती सफेद चमक
आँखों के तले स्याह घेरे लफ्जों की बुझती चहक
वो शायद इसकी वजह मुझसे ज्यादा जानता है
मेरा आइना मुझसे अब मेरी पहचान मांगता है
उसके सामने मैने कपडे़ ही नहीं कई रुप बदले हैं
कई अरमान दफन हुए हैं कई ख्वाब मेरे जले है
ढलती उम्र जलती सासों का वो हिसाब मांगता है
मेरा आइना मुझसे अब मेरी पहचान मांगता है
उम्र के कितने दौर हमने हँसकर गुजार दिए
बिना अपने होने का जमाने से अधिकार लिए
खुद को लुटाकर खुदाई पाने का वो सबब जानता हैं
मेरा आइना मुझसे अब मेरी पहचान मांगता है
कहाँ मैं को भूलकर मुझे हासिल हम हुआ है
किस बात पे खुशी किस बात पे गम हुआ है
वो परत दर परत उम्र के किस्से चेहरे से उतारता है
मेरा आइना मुझसे अब मेरी पहचान मांगता है
रूठे रिश्तों को मनाने की जद्दोजहद में रीतता मन
उम्र के साथ अपनों का कम होता हुआ अपनापन
शायद मुझसे ज्यादा मुझे मेरा आइना जानता है
मेरे चेहरे पे पडती हुई झुर्रियों के निशान को
मेरी थोड़ी बची खुची दबी पिसी मुस्कान को
आइना अपनों से ज्यादा मुझे अपना मानता है
मेरा आइना मुझसे अब मेरी पहचान मांगता है
— आरती त्रिपाठी