गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – जो वक़्त की बिसात पे तू हौसले बिछाएगा

जो वक़्त की बिसात पे तू हौसले बिछाएगा
फ़लक नही है दूर फिर सितारे तोड़ लाएगा

आँधियों के वेग में अडिग खड़ा रहा अगर
रुख़ हवाओं का तू फिर ख़ुद ही मोड़ पाएगा

कदम को कर कठोर तू ख़ुद को जो जलाएगा
सदमें हर सफ़र के फिर हँस के झेल जाएगा

निराश हो के रुक नही हताश हो के थक नही
आशा की पतंग को स्वयं ही तू उड़ाएगा

पर्वतों को तोड़ के जो रास्ते बनाएगा
एक दिन ज़माना भी पीछे पीछे आएगा

निगाह तेरी लक्ष्य पे तू मुश्किलों से डर नही
कठिन डगर पे चल के ही तू मंज़िलों को पाएगा

— अमित ‘मौन’

अमित मिश्रा 'मौन'

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