सकारात्मक सोचवाले सदाबहार अभिनेता देवानंद
अंग्रेजी में एक कहावत है, ‘ ए मैन ऐज ओल्ड , ऐज ही फील्स। ‘ अर्थात् व्यक्ति की उम्र उतनी ही होती है, जितनी वह महसूस करता है। बढ़ती आयु में भी सक्रिय रहने से बुढ़ापा पास आने से डरता – घबराता – कतराता है। सृजनात्मक , रचनात्मक काम करने के लिए आयु आड़े नहीं आती है। इन्हीं सारी खूबियों, खासियतों से लबालब थे अभिनेता, निर्माता, निर्देशक और लेखक देवानंद जी।
प्रभात फ़िल्म कंपनी के बाबूराव पई पहली मुलाकात में देव को देखकर दंग रह गए। मनमोहक मुस्कान, बोलती आंखें और अद्भुत आत्मविश्वास से प्रभावित होकर बड़ा ब्रेक दिया, हीरो का ‘ हम सब एक हैं ‘ ( १९४६ ) में। देव हमेशा ‘ युवा ‘ बने रहना पसंद करते थे। नूतन के साथ कई फ़िल्मों में नायक बने। मजेदार बात यह है कि नूतन की मां शोभना समर्थ के साथ भी हीरो का रोल ‘ इन्सानियत ‘ ( १९५५ ) में किया। दिलचस्प बात यह भी है कि ‘ दुनिया ‘, ‘ जॉनी मेरा नाम ‘ और ‘ अमीर – गरीब ‘ में उनकी मां बनी सुलोचना उनसे ५ साल छोटी थी। दूसरी रोचक बात यह भी है कि ‘ वारंट ‘ में उनके पिता बने प्राण उनसे महज ४ वर्ष बड़े थे। खुद की निर्मित फ़िल्म ‘ देस – परदेश ‘ ( १९७८ ) में टीना मुनीम को अपनी नायिका बनाया, तब वे ५५ साल के थे।
देवानंद का नाम ज़ुबान पर आते ही मन – मस्तिष्क के स्मृति पटल पर चिर – परिचित अंदाज़ में मुस्कुरानेवाले, चितोरे, एक ही सांस में धाराप्रवाह, मौलिक शैली में संवाद बोलनेवाले कलाकार की छवि अंकित होती है। चाकलेटी हीरो के रूप में सुप्रसिद्ध देव की ‘ लवर बोय ‘ की इमेज बनी। दिलफेंक हंसी, चाल – ढ़ाल में अलबेलापन, जोशीलापन, संवाद बोलने में अनोखापन साफ दिखाई देता था। सात दशकों तक दर्शकों को दीवाना बनाए रखा, उन में मैं भी एक हूं। रंग – बिरंगी पोशाकें, गले में मफ़लर, सरपर स्टाईलिश टोपी पहननेवाले देव लड़कियों को सपनों के राजकुमार सरीखे दिखते थे। ऐसा प्रतीत होता था मानो उनका जन्म प्रेम, प्यार, इश्क़, महोब्बत, लव के लिए ही हुआ हो। रोमांस उनके रग – रग में रच, बस चुका था। शायद इसी कारण उन्होंने अपनी आत्मकथा को सार्थक शीर्षक दिया ‘ रोमांसिंग विद लाईक…..
मनुष्य की औसत आयु ६० – ६५ वर्ष मानी जाती है, जबकि वे इतने सालों तक ( १९४६ – २०११ )
रूपहले परदे पर छाए रहे। ‘ देस – परदेश ‘ के बाद उनके द्वारा निर्मित किसी फ़िल्म को सफलता नहीं मिली। हिट और फ्लॉप के समीकरणों से ख़ुद को दूर रखनेवाले देव ने एक बार कहा था, ‘ मेरी हर फ़िल्म मेरे लिए हिट है। मैंने अपनी हर फ़िल्म एक उदेश्य से बनायी है और उस में एक प्रतिशत दर्शकों को भी कोई संदेश मिलता है तो मेरे नज़रिये से हिट है। ‘ देव ने अनगिनत नायिकाओं के साथ फ़िल्मों में रोमांस किया। सुरैया के साथ अभिनय करते उन्हें अपना दिल दे बैठे। उन्हें दिलोजान से चाहते थे। अपनी जीवन संगिनी बनाने की कोशिश में सुरैया के परिवारवालों ने अडंगा लगाया। इसलिए मजबूरीवश अपने साथ फ़िल्मों में काम कर चुकी ख़ूबसूरत नायिका कल्पना कार्तिक के साथ विवाह बंधन में बंधे। उन्होंने रेहाना से लेकर दिव्या दत्ता तक हर आयु की अभिनेत्रीयों के साथ काम किया , जिसकी लंबी – चौड़ी लिस्ट में से कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं।
सीधी – साधी सुंदर वहीदा रहमान के साथ उन्होंने ‘ सी आई डी ‘, ‘ सोलवां साल ‘, ‘ काला बाज़ार ‘, ‘ रूप की रानी, चोरों का राजा ‘, ‘ बात एक रात की ‘, ‘ गाईड ‘ और ‘ प्रेम पुजारी ‘। ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी के साथ ‘ जॉनी मेरा नाम ‘, ‘ तेरे मेरे सपने ‘, ‘ छुपा रुस्तम ‘, ‘ शरीफ़ – बदमाश ‘, ‘ अमीर – गरीब ‘ ‘ जानेमन ‘ और ‘ अमन के फ़रिश्ते ‘। सौंदर्य की देवी, मनमोहिनी मधुबाला के साथ ‘ निराला ‘, ‘ मधुबाला ‘, ‘ नादान ‘, ‘ आराम ‘, ‘ काला पानी ‘, ‘ जाली नोट ‘ और शराबी ‘। अपनी प्रियतमा सुरैया के साथ ‘ विद्दा ‘, ‘ शायर ‘, ‘ जीत ‘, ‘ नीली ‘, ‘ सनम ‘ और ‘ दो सितारे ‘। अपनी अर्धांगिनी कल्पना कार्तिक के साथ ‘ टैक्सी ड्राईवर ‘, ‘ हाऊस नंबर ४४ ‘, ‘ नौ दो ग्यारह ‘ और ‘ तीन देवियां ‘। आधुनिक, अल्हड़ ज़ीनत अमान के साथ ‘ हरे रामा हरे कृष्णा ‘, ‘ हीरा पन्ना ‘, ‘ वारंट ‘, ‘ प्रेम शास्र ‘, ‘ कलाबाज़ ‘ और ‘ डार्लिंग डार्लिंग ‘। भोली – भाली, मासूम दिखनेवाली टीना मुनीम के साथ ‘ देस – परदेश ‘, ‘ ‘ और ‘ मनपसंद ‘ में काम किया। और भी कई महत्वपूर्ण नाम हैं, सभी नायिकाओं को इस में समा सकना संभव नहीं।
उम्र के ८८ वें साल तक तरोताज़ा, चुस्त – दुरूस्त – तंदुरुस्त रहनेवाले देव उमंग, उत्साह, उल्लास और ऊर्जा के उत्कृष्ट उदाहरण थे। ज़िंदगी को जोश, जुनूनवाले जज़्बे के साथ जीनेवाले देव के पास सदा जवां रहने का अचूक फॉर्म्यूला हाथ लग गया था। उन्हें जीवनानंद कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। फ़िल्म ‘ ईश्क़ ईश्क़ ईश्क़ ‘ की बाह्य शूटिंग ऊंचे पहाड़ों पर होनी थी। साथी कलाकारों और तकनिशियनों के साथ वहां पर पैदल पहुंचना था। सभी को साश्चर्य हुआ, पहाड़ पर देव के सबसे पहले पहुंचने पर।
फ़िल्म ‘ हम दोनों ‘ का सुंदर शब्दों से सजा श्रवणीय गीत है, ‘ मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया। हर फ़िक्र को धुंएं में उड़ाता चला गया ………। ऐसा प्रतीत होता है कि गीतकार ने देव के व्यक्तित्व और कृतित्व को ध्यान में रखकर ही इस गाने की रचना की है। देव का मानना था कि जब तक दिमाग़, हाथ – पांव चलते रहते हैं, तब तक शरीर युवा बने रहता है। निष्किय व्यक्ति शीघ्र बूढ़ा बनता है। इसी बात को उन्होंने सार्थक शब्दों में समझाया है, ‘ प्रकृति ने मुझे अपनी तरह बनाया है। सदियों से फूल खिलते आ रहे हैं, हवाएं इसी तरह बह रही हैं। जब वे ही नहीं थकती तो भला हम क्यों थकें !
अशोक वाधवाणी , गांधी नगर , महाराष्ट्र, मो : ९४२१२१६२८८.