बड़ा महत्वपूर्ण रेडियो का प्रादेशिक समाचार
एक छोटा सा परिवार श्रीमती धापू एवं श्री रूपेश कुमार का परिवार शहर से बाड़मेर से करीब सौ किलोमीटर दूर छोटे से गांव राजबेरा के ओढाणा धोरा टीकूराम जी की ढाणी मे रहता था, परिवार मे नन्ही मेहमान रवीना का आगमन अभी हुए छह महीने हुऐ थे, हंसी खुशी का माहौल था। रूपेश कुमार को किक्रेट का बचपन से शौक रहा था, अभी टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप के मैच परवान पर थे,
रूपेश टेलीविजन पर सुबह से लगे हुए थे, धापू ने खाना बनाया और रवीना को सुलाकर प्रादेशिक समाचार सुनने आई चुकी आकाशवाणी रेडियो के नो बजे वाले समाचार भी छूट गये थे। वह बेचैन हो उठी । अब और इंतजार नही कर सकती । ‘मैच तो दिनभर चलता रहेगा, मगर समाचार निकल गए तो?’ सोचकर उसने पति की नाराजगी और लिहाज, दोनों नजरअंदाज कर दिया। ‘सुनिए! जरा ई-राजस्थान चैनल लगा दीजिए। बस मुख्य समाचार देख लूं, फिर लेना आप अपना क्रिकेट मैच।’ पतिदेव सुना-अनसुना किए हाथों मे रिमोट कसकर पकड़े मैच देखने मे तल्लीन थे। वे भी समीप बैठी थी विचारमग्न-सी, क्या करे वह?
कल शाम साढे छह बजे रेडियो पर प्रादेशिक समाचार सुने थे उस समय मामला शांत होने की खबर थी भी…।
पर अब टीवी पर पूरे समाचार देख लेती, तो पूरी तसल्ली हो जाती। वो आंशकाओं से घिर गई, तो पति पर लगभग पड़ी – ‘आप ये फालतू का मैच – वैस बदलेंगे या नही या नहीं? ‘मुझे समाचार देखना है।’
‘समाचार, समाचार, समाचार…! मैच इतना इंट्रस्टिंग हो चुका है। मैं चैनल बिल्कुल नही बदलूंगा। रूपेश ने ऐलान करते हुए बात को खत्म-सा कर दिया और व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा-‘वैसे तुम समाचार कब से देखने लगी? क्या देखना है ?’
‘अरे वो हाई स्कूल के मैदान से लगे पटवार भवन के पास रघुनाथ जी के मंदिर के ओटले को लेकर कुछ विवाद हो रहा है। दो-चार दिनों से तनाव भी बढ़ गया था। वही देखना चाह रही हूं कि अब स्थिति कैसी है? ईश्वर करे कि सब सामान्य हो। सब खैरियत हो।’ ‘हद करती हो यार,दंगे हुए ठेठ वहां और तुम घर बैठी चिंता में घुली हो।
इतनी फिक्र तो बड़े से बड़े राजनेता को भी नही होगी ।’
राजनेताओं की राजनेता ही जाने, मैं तो मां हूं न! फिक्र तो करूंगी ही,उसी रास्ते से होकर ममता, रवीना, लक्ष्या को हाॅस्टल से काॅलेज ,स्कूल आना-जाना पड़ता है ।
रूपेश तो धापू की बातें सुनकर चिंतन विचारमग्न में थे।
— सुबेदार रावत गर्ग उण्डू