कुंडलिया
चाहत दिल की लिख रहा, पढ़ लो तनिक सुजान
सूरज बिन पश्चिम गए, करता नहीं बिहान
करता नहीं बिहान, नादान बु-द्धि का पौना
हँसता है दिल खोल, रुदन करता जस बौना
कह गौतम कविराय, हाय रे दिल के आहत
विश्वास बिना का प्रेम, न समझे मन की चाहत।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी