मुक्तक
“मुक्तक”
सूक्ष्म निरीक्षण से हुए, कोटि कोटि सत्काम।
जल के भीतर जीव प्रिय, नभचर थलचर आम।
मित्र जीव रक्षा करें, बैरी लेते प्राण-
रुधिर सभी का एक सा, अलग अलग है नाम।।
लघु के लक्ष्य अभेद हैं, लिए साहसी तीर।
चावल पय जब भी मिले, पके माधुरी खीर।
कटहल पक मीठा हुआ, लिए नुकीले छाल-
काले तिल के शक्ति को, कब समझे बेपीर।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी