झोंझ
कितना सुन्दर घर है
जिसको कहते झोंझ हैं
तिनका-तिनका चुनकरके
खूब सजाती झोंझ है
जरा सहारा डाल का
ईंट गारा सूखे-साखे
खरपतवार का
बड़ी लगन और मेहनत
से कर डाला
निर्माण है झोंझ का
कितना
सुन्दर कितना
मनमोहक है
बनता जाता झोंझ
है जुगनूँ की मिट्टी
से देखो चमक
भी उठता
झोंझ है
रंग बिरंगे
नील गगन
में खाते
रहता गोते है
जरा सहारे
एक लकड़ी के
झूमता रहता
झोंझ है
— शिवम अन्तापुरिया