जीना किया मुहाल धरा का
जीना किया मुहाल धरा का ,संकट में मन प्राण किया है ।
ढेर लगा,मल औ कचरे का , हैवानों सा काम किया है ।
नदियों के जल में मिलता मल ,दूषित करते हैं गंगाजल ।
यदि नहीं संकट पर चेते ,पीओगे तब यही हलाहल ।
मानव ने अंधा ,बहरा हो ,उतपन्न यह व्यवधान किया है ।
जीना किया मुहाल धरा का ,संकट में मन प्राण किया है ।।
जल के स्त्रोत सभी हैं सूखे ,बिन जल के जीवन क्या होगा ।
रुदन नाद ब्रमांड में गूँजे,हृदय विदारक चित्र खिंचेगा।
छीन प्रकृति से हरियाली को ,ईश्वर का अपमान किया है ।
जीना किया मुहाल धरा का ,संकट में मन प्राण किया है ।
घट-घट डूबा गर्त धरा का ,बिगड़ रहे हालात दिनों दिन ।
देकर हाथ सम्भाल अभी लो ,आकुल होते प्राण दिनों दिन ।
मैला कर वसुधा आँचल तुम,कहते काज महान किया है।
जीना किया मुहाल धरा का ,संकट में मन प्राण किया है ।
— रीना गोयल