कल्पनाएं
ना जाने कितनी कोरी कल्पनाएं
दिल-ओ-जाँ पे दस्तक देती रहती हैं
मगर जीवन का यथार्थ कोई कल्पना नही
बल्कि हक़ीक़त की एक खुरदुरी जमीं है
जो एक ठहराव चाहता है, फिसलन नही
ज़िन्दगी चाहती है निरंतर बहना..मगर
हर पल अपनी जमीं से जुड़कर..
इसलिए कहती हूँ कि मेरी निगाहों में
एक कोरी कल्पना बनकर आने की
कोशिश ना करो, क्योंकि मैं समझ चुकी हूँ
जीवन की हक़ीक़त को जो हमदोनो को
बिल्कुल अलग दिशा में ले जाती है।।
‘रश्मि’