प्रेम
जब प्रेम जागृत हो जाता है
तो मेरे तेरे का भाव बिसर जाता है
मैं मैं नही रहता
तू तू नहीं रहता
सब समरस हो जाता है
चहुँ दिशाएं हो जाती आलोकित
बस आंनद बरसता है
जब खो जाता है उस आनंद में
तो फिर परमानंद हो जाता है।
— कालिका प्रसाद सेमवाल
जब प्रेम जागृत हो जाता है
तो मेरे तेरे का भाव बिसर जाता है
मैं मैं नही रहता
तू तू नहीं रहता
सब समरस हो जाता है
चहुँ दिशाएं हो जाती आलोकित
बस आंनद बरसता है
जब खो जाता है उस आनंद में
तो फिर परमानंद हो जाता है।
— कालिका प्रसाद सेमवाल