मैं वर्षा की बूंद हूं **
तुम तो
एक मरुस्थल हो
और मैं
एक वर्षा की बूंद हूं
तुम्हारे लिए
मैं कुछ भी नहीं हूं।
तुम्हारे पास आकर
मैं अपना अस्तित्व
खोना नहीं चाहता हूं,
मैं तो एक वर्षा की बूंद हूं।
मुझसे सागर की
प्यास मिटती है
मिट्टी अपनी
भीनी-भीनी खुशबू
देकर वातावरण सुगंधित
कर देती है,
पक्षियां मधुर गीत गाती है,
बगिया में फूल खिलते है,
पेड़ पौधे हरे भरे होते हैं
खेत लहराते हैं।
मरूस्थल तुम्हारे लिए
मैं कुछ भी नहीं हूं,
तुम्हारे पास आकर
मैं अपना अस्त्तित्व
खोना नहीं चाहता हूं,
सागर में गिरने से
मुझे जीवन मिलता है।
मेरे समर्पण से
हर ओर हरियाली छा जाती है
और खुशहाली आ जाती है।
== कालिका प्रसाद सेमवाल