मानव हूँ
मानव हूँ मानवता की बात करुँगा,
एक बार नहीं मैं तो दिन-रात करुँगा |
बैर मेरा तम भरी काली रातों से –
मैं उज्ज्वल प्रकाश की बात करुँगा ||
भेदभाव, आडंबर का हो विनाश,
फैले जग में सत्य ज्ञान प्रकाश |
भारत बने हमारा विश्वगुरु –
अज्ञान-अंधेरे का हो सर्वनाश ||
ओउम ध्वजा फहराये घर-घर,
ज्ञान-यज्ञ, वेदकथा हो हर-घर |
ये जग ही स्वर्ग बन जायेगा –
मिट जायेगा हर आसुरी ड़र ||
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा