राह तुम्हारी तकती हूँ
राहे वफा में दीप जलाकर
राह तुम्हारी तकती हूँ
हाँ राह तुम्हारी तकती हूँ
दुनिया की लापरवाही से दूर
परवाह तुम्हारी करती हूँ
हाँ परवाह तुम्हारी करती हूँ
आता नहीं मुझे जमाने का चलन
मैं तो कदमों से तेरे चलती हूँ
हाँ कदमो से तेरे चलती हूँ
ना जानू नुकसान नफा
दिल में बसी है मेरे वफा
छोड़ के सारी दुनियादारी मैं तो
प्यार तुझी से करती हूँ
हाँ प्यार तुझी से करती है
कितने दिन तुम दूर रहे
कितने दिन मेरे पास रहे
कब कब हँसे हो तुम दुनिया में
कब कब तुम उदास रहे
अपने जीवन में मै बस
दिन इतने ही गिनती हूँ
हाँ दिन इतने ही गिनती हूँ
राहे वफा में दीप जलाकर
राह तुम्हारी तकती हूँ
हाँ राह तुम्हारी तकती हूँ
तेरी यादों के महलों में किसी
रूह सी मैं भटकती हूँ
हाँ रूह सी भटकती हूँ
कभी तो मेरी गलियों से
तेरा आना जाना होगा
जाने उस पल कितना वीराना होगा
यही सोच उजाला करती हूँ
तेरी मोहब्बत की चिता बनाकर
दिन रैन उसी में जलती हूँ
अपनी सांसें अपना जीवन
अपने आप को ही मैं खलती हूँ
हाँ अपने आप को ही मैं खलती हूँ
तेरे पथ के कांटों को मैं
पलकों से अपने चुनती हूँ
हाँ पलकों से अपने चुनती हूँ
छोड़ गये जिस डगर में मुझको
उसी डगर में आज भी मिलती हूँ
हाँ उसी डगर में आज भी मिलती हूँ
बिखरा काजल फटा हैं आँचल
कहते हैं लोग मुझे पागल
अपने पागलपन में ही मैं
गिरती और सम्भलती हूँ
हाँ गिरती और सम्भलती हूँ
सदियों की प्यास लिए दिल में
सांसों की धूनी पर सुलगती हूँ
हाँ सांसों की धूनी पर सुलगती हूँ
राहे वफा में दीप जलाकर
राह तुम्हारी तकती हूँ
हाँ राह तुम्हारी तकती हूँ
— आरती त्रिपाठी