श्राद्ध
छोटे तू तो बड़ा ही खुश दिखाई दे रहा है और तेरे चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि और तृप्ति का भाव दिखाई दे रहा है।
हाँ दादा,आप सही कह रहे हैं।अभी श्राद्धपक्ष में जब हमें अपनी संतानों ने आह्वान कर पितृलोक से बुलाया तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा लेकिन दादा आप क्यों परेशान दिखाई दे रहे हैं।
क्या बताऊँ, कहने को तीन बेटे हैं परन्तु तीनों की अलग अलग खींचतान चल रही है।मेरे जीतेजी जमीन-जायदाद के बंटवारे के लिए झगड़ते रहे और जब वसीयत कर अपने हिसाब से बंटवारा कर दिया तो तीनों भाई एक दूसरे का चेहरा भी नहीं देखते।छोटा अमन तो पहले भी किसी की परवाह नहीं करता था , उसे तो कोई मतलब ही नहीं है। हाँ सुनील और पवन जमाने को दिखाने के लिए अलग अलग मेरा श्राद्ध कर रहे हैं।अब मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि किसके घर जाऊँ।ज्यादा अच्छा तो यही है कि बिना कुछ ग्रहण किये पितृलोक को लौट जाऊँ।
अरे दादा, आप परेशान मत हों।आप तो मेरे साथ चलो।आखिर हम हैं तो एक ही कुटुम्ब के।मैं तो अपने बेटों के बीच सम्पत्ति का बंटवारा भी नहीं कर पाया था।मुझे वसीयत करने का भगवान ने मौका भी नहीं दिया लेकिन बेटे समझदार हैं और सम्पत्ति का बंटवारा भी आपसी समझ से कर लिया। अब वे मिलकर ही श्राद्ध कर रहे हैं।चलो वहीं भरपेट ग्रहण करेंगे।
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