लघुकथा

झुग्गियों की आग

तड़के चार बजे झम्मो ने एक झुग्गी से उठती चिंगारी देखी और वह चीख पड़ी।उसकी चीख हवा से मिलकर जंगल की आग की तरह फैल गयी और सभी लोग अपनी-अपनी झुग्गियों से आँख मलते हुए निकले।
बस्ती में आतंक छा गया।झुग्गी आग पकड़ चुकी थी।गबरू दौड़ता-हाँफता पास के दमकल केंद्र की ओर दौड़ा।सभी कर्मचारी सुख-चैन की नींद में सो रहे थे।
“बाबू साहब,बाबू साहब।”वह चिल्लाया
“क्या है रे?क्यों चिल्ला रिया है?” एक कर्मचारी आँख मलते हुए उठा।
“चलिये, झुग्गियों में आग लग गयी।”
“क्या?पुलिस में रपट लिखवा,हम आते हैं।” कहकर वह दूसरे साथी की ओर मुड़ा।
“रामस्नेही,उठ वर्दी पहन, चलते हैं।” और उसने जोरदार अंगड़ाई ली।
और जब तक दमकल कर्मचारी और पुलिस पहुँचती सभी दौ सौ झुग्गियाँ जलकर राख हो गईं थीं।
कुछ देर बाद नेताजी वहाँ पधारे और आश्वासन स्वरूप दूध,डबल रोटी बंटवाकर सहानुभूति बटोरी और चले गए।अगले दिन सभी समाचार पत्रों में एक विज्ञापन देखा गया:
“दीमकपुर की झुग्गियों में बसने वाले पीड़ितों के ध्यानार्थ निवेदन है कि प्रशासन उन्हें 25-25 गज के प्लाट अलॉट कर रहा है।सभी आवेदनकर्ता अपना प्रार्थनापत्र अपने विधायक से पारित करवाकर पाँच सौ रुपये की राशि सहित कार्यालय में अमुक तिथि तक जमा करवा दें।आदेशानुसार।”
योजना फ़ाइल-दर-फ़ाइल जारी है।पुलिस बड़ी मुस्तैदी से आग लगने के कारणों की जाँच कर रही है।

अशोक जैन, गुरुग्राम

अशोक जैन

गुरुग्राम Email- [email protected]