कविता

तन्हा सफर

तन्हा मोहब्बत का तन्हा सफर

ना कुहासा कहीं ना कहीं कहर
वीरान सुनसान खामोस राहें
तड़पता हुआ मन रोती निगाहें
वक्त के हाथों लुटता अपनापन
सालता कचोटता मन का सूनापन
ना कहीं मोड़ है ना कहीं ठहराव है
 सुहाना सफर है और सूना पडाव है
ना नफरत की राहों में अंधेरा है
ना मोहब्बत की राहों में उजाला है
रुठता मन और टूटता हुआ तन
 दोनों को मुश्किल से सम्भाला है
मोहब्बत कर तो बैठे मगर मोहब्बत
दिल को हमारे अब रास आती नहीं
ख्वाब सजने से पहले टूट रहे हैं
नींद अब हमारे पास आती नहीं
ना आगाज है ना अंजाम दिखता
अश्कों से क्यूँ रब तकदीर लिखता
भटकी राहों में उलझे ख्याल चलते है
धूप भाती है अब हमें साये खलते है
गजब का है मोहब्बत का ये सफर
टेढ़ी मेढ़ी राहें हैं और दिल है बेसबर
खुशियां उधार की सी लगने लगती है
जब ख्वाहिशें उम्मीदों संग सजती है
दिन का सूरज ढल जाता है मुस्कुराकर
रात की निशा का आमंत्रण ठुकराकर
चलो पूरा करते है मोहब्बत का सफर
आधी अधूरी सुनसान राहों में चलकर
आरती त्रिपाठी

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश