लघुकथा

सजा

जेल में सजा काट रहे पति ही एकमात्र घर के सहारा थे । जवान पत्नी कहाँ जाए काम करने जहाँ भी जाती लोगों के नजरों और तानों का शिकार होती । पति से जेल में मिलने आयी थी । पत्नी को देखकर पति रो पड़े पत्नी भी रोने लगी । “कैसी हो नीलू ?” आँसू पोछते हुए पूछा । “पति बलात्कारी हो तो पत्नी कैसे रह सकती है..।” पत्नी के आँखों में पति के प्रति नफरत की ज्वाला थी । “कितनी बार कहूँ कि मैं किसी का बलात्कार नहीं किया है, मुझे फंसाया गया है, पहले लोग कहते थे अब तुम भी कह रही हो, जब अपने ही विश्वास न करें तो जिंदा रहना भी मौत से बद्तर है…।” पत्नी के बातों से पति रो पड़े । “तो सारे सबूत… गवाह.. झूठे हैं  सिर्फ आप ही सही हो और… डीएनए रिपोर्ट..?” पत्नी शक की निगाहों से पति की ओर देखने लगी । “नीलू यकीन करो सब झूठ है, सच्चाई वो नहीं जो पैसे और रूतबा के बल पर साबित किया गया है सच्चाई यह है कि उस रात मैं खाना गर्म करके मालिक को बुलाने गया था । कमरे में पहुँचा तो देखा कि मालिक उस के लड़की के साथ जबरदस्ती कर रहे थे । शराब के नशे में के कपड़े फाड़ डाले थे । लड़की चीख रही थी, गार्ड और अन्य सदस्यों को सब पता था मैं बस अनजान था । लड़की मुझे देखकर मेरे पीछे आकर छुपने लगी । बचाने के लिए गिड़गिड़ाने लगी । तब मैंने बचाने के लिए  मालिक पर हाथ उठाया था । उसके बाद मालिक के आवाज देने से उसके आदमी आए और मुझे मारते हुए बाहर निकाले, किसी तरह मैं जान बचाकर भाग निकला । अगले दिन पुलिस को मैंने सारी घटना सच-सच बताया लेकिन यह सच्चाई मुझ पर भारी पड़ गया । मुझे उल्टा फंसाया गया सारे सबूत गवाह डीएनए रिपोर्ट झूठी हैं सबको खरीदा गया और मुझे सच बोलने की सजा मिल रही है । आज सच्चाई मजाक बन कर रह गई है ईमानदारी और सच्चाई नहीं चलने वाली है ।” पति फूट-फूट कर रोने लगे ।

— भानुप्रताप कुंजाम ‘अंशु’