भारत माता के सपूत एवं हिन्दू जाति के रक्षक वीर वन्दा वैरागी
ओ३म्
महान अमर आर्य-हिन्दू महापुरुषों की श्रृंखला में इतिहास में एक नाम वीर बन्दा वैरागी का भी है। हिन्दू जाति का यह दुर्भाग्य है कि इसने अपने इस महापुरुष को विस्मृत कर दिया है। आर्यसमाज के आयोजनों में भी कभी हिन्दू जाति के रक्षक इस महात्मा को स्मरण नहीं किया जाता। हमने इन पर कभी किसी आर्य पत्रिका में कोई लेख नहीं देखा। आर्य बन्धुओं का ध्यान आकर्षित करने के लिये आज हम ऋषि-भक्त एवं क्रान्तिकारी भाई परमात्मा जी (1874-1947) की पुस्तक ‘‘वीर वैरागी” से लेखक का प्राक्कथन प्रस्तुत कर रहे हैं जिससे पाठक वीर वैरागी के जीवन के महत्व से किंचित परिचित हो सकेंगे और अपने स्तर से इसका प्रचार व प्रसार कर हिन्दू जाति को इसके जीवन को पढ़कर इनके महान कार्यों से प्रेरणा लेने की प्ररेणा कर सकेंगे। यह भी बता दें कि भाई परमानन्द जी ऋषि दयानन्द के भक्त थे। आपने विश्व के अनेक देशों में जाकर वैदिक धर्म का प्रचार किया था। अपनी अफ्रीका की एक यात्रा में भाई परमानन्द जी गांधी जी के पास कुछ समय रूके थे। वहां गांधी जी ने श्रद्धावश भाई परमात्मा जी का बिस्तर अपने कंधे पर उठा लिया था। अंग्रेजों ने भाई परमानन्द जी की देश भक्ति की गतिविधियों के कारण उनपर केस चलाया था जिसमें आपको मृत्यु दण्ड मिला था जो बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया था। आपको पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल जिसे कालापानी कहते हैं वहां वर्षों तक रखा गया था। कालापानी की जेल में राजनीतिक कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार व यातनाओं के विरोध में आपने दो माह तक भूख हड़ताल भी की थी। आपके जेल चले जाने के बाद आपकी पत्नी एवं परिवार ने बहुत बुरा समय व्यतीत किया। भाई महावीर आपके सुपुत्र थे जो मध्य प्रदेश के राज्यपाल भी रहे हैं। लगभग 25 वर्ष पूर्व हमने भाई परमानन्द जी पर एक विस्तृत लेख लिखा था जो ‘आर्य मर्य़ादा’ पत्रिका में दो किश्तों में प्रकाशित हुआ था। भाई परमानन्द जी द्वारा लिखी वीर वैरागी पुस्तक की भूमिका को ही आज हम अपने सुहृद पाठको के लिये प्रस्तुत कर रहे हैं जिससे पाठक बन्दा वैरागी जी के आदर्श जीवन की एक झलक पा सकें और उनके प्रति अपने कर्तव्य का निश्चय कर सकें।
मैंने (भाई परमानन्द) एक ऐसे महापुरुष का जीवन-चरित्र लिखने का विचार किया है जिसके जीवन की ओर बहुत कम ध्यान दिया गया है। मुझे भारत के इतिहास के अनुशीलन से यह निश्चय-सा हो गया है कि वह व्यक्ति, जिसे साधारण बोलचाल में ‘बन्दा वैरागी’ कहा जाता है, एक असाधारण पुरुष था। मुझे उसके जीवन में वह विचित्रता दिखाई देती है जो न केवल भारतवर्ष के प्रत्युत संसार-भर के किसी महापुरुष में नजर नहीं आती। उच्च आत्माओं की परस्पर तुलना करना व्यर्थ है, फिर भी वैरागी के जीवन में कुछ ऐसे गुण पाए जाते हैं, जो न राणा प्रताप में दिखाई देते हैं, और न शिवाजी में। मुसलमानों के राज्य काल में इस ‘वीर’ का आदर्श एक सच्चा जातीय आदर्श था। हिन्दू पदाक्रान्त और पराधीन अवस्था में थे। ‘वैरागी’ एक पक्का हिन्दू था। सिक्खों के अन्दर अपने पंथ के लिए प्रेम का भाव काम करता था। राजपूत और मराठे अपने-अपने प्रान्त को ही अपना देश समझे बैठे थे। ‘वैरागी’ न तो पंथ में सम्मिलित हुआ और न ही उसे किसी प्रान्त-विशेष का ध्यान था। उसकी आत्मा में हिन्दू-धर्म और हिन्दू जाति के लिए अनन्य भक्ति और अगाध प्रेम था। हिन्दुओं पर अत्याचार होते देख उनका खून खौल उठता था। इन अत्याचारों का बदला लेने के लिए उसने उन्हीं साधनों का उपयोग किया जिनसे मुसलमानों ने हिन्दुओं को दबाने की कोशिश की।
संसार में ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपने देश और जाति के लिए काम करते हुए उन पर अपने प्राण न्यौछावर किए हैं। ऐसे भी हुए जिन्होंने अन्तरात्मा के स्वातन्त्रय के लिए कष्ट सहे और धर्म पर बलि चढ़ाई। बड़े-बड़े सेनानायक हुए हैं। जिन्होंने बीसियों युद्ध जीतकर अक्षय कीर्ति प्राप्त की। दूसरी ओर ऐसे भी हुए जिन्होंने एक ही चोट से दुनिया छोड़ दी। परन्तु ऐसा बिरला ही कोई देखने में आता है जिसमें इनमें से एक से अधिक गुण पाए जाते हों, किन्तु हमारे चरित्रनायक के जीवन में इन सब गुणों का समावेश है। लक्ष्मण राजपूत (यह बन्दा वैरागी का पहला नाम है) को शिकार खेलते एक हिरणी पर दया आई, तत्काल उसने घर-बार, भाई-बन्धु सब त्याग कड़ी तपस्या का व्रत धारण कर लिया। यह उसके जीवन का एक अंश था।
जब गुरु गोविन्द सिंह जी पंजाब छोड़ दक्षिण में गए तो वहां उनकी भेंट ‘वैरागी’ से हुई। उन्होंने उसको हिन्दू-जाति की दुःखित अवस्था दिखाई। ‘वैरागी’ वैराग्य छोड़ सेना-नायक बना। अब उसने वह वीरता दिखाई जिससे भारत भर में तहलका मच गया। ‘वैरागी’ ही पहला पुरुष था जिसने लाहौर छोड़, पंजाब का अधिकांश भाग जीता और नये सिरे से हिन्दू राज्य की नींव रखी। यदि इस देश की पुरानी व्याधि (शायद् हिन्दुओं की आपसी फूट) फिर न आ उपस्थित होती तो ‘वैरागी’ ने गुरु गोविन्दसिंह का अधूरा काम पूरा कर दिया था (होता)।
‘वैरागी’ के जीवन की दूसरी विचित्रता उसका बलिदान है। संसार में अनेक महानुभाव धर्म पर बलिदान हुए हैं, परन्तु ‘वैरागी’ ने जिन वेदनाओं को सहन करके अपने प्राण दिए और जिस वीरता के साथ इनको सहन किया, उन्होंने इस बलिदान को अद्वितीय और अभूतपूर्व बना दिया है। ‘वैरागी’ का बलिदान ईसा के बलिदान से भी अधिक करुणामय हुआ है।
ये सभी गुण हमारे सामने ‘वैरागी’ के जीवन को एक सच्चे जीवन के रूप में उपस्थित करते हैं। उस समय हिन्दू ‘वैरागी’ को कल्की का अवतार मानते थे और मेरे विचार में आजकल भी इसे ऐसा मानना अनुचित न होगा। हिन्दूमात्र का कर्तव्य है कि वह ‘वैरागी’ के जीवन को सदा अपनी आंखों के सामने रखे।
चूंकि सिक्खों का पिछला इतिहास अधिकतया पंथ के साम्प्रदायिक रंग में रंग गया है, और चूंकि ‘वैरागी’ पंथ का अंग-विशेष न था इसलिए, इसके जीवन को भुला दिया गया। ‘वैरागी’ दीन भारत का परम स्नेही तथा परम उद्धारक था। परन्तु हिन्दू अपने सच्चे हितैषी के गुणज्ञ (गुणों के ग्राहक एवं प्रशंसक) न बन सके, और न ही उसकी मृत्यु के पश्चात् उन्हें उसके काम को संभालने का अवसर मिला। मुझे (भाई परमानन्द को) आशा है कि यह छोटी-सी पुस्तक इस असावधानता को दूर करने का प्रयत्न करेगी।
उपुर्यक्त पंक्तियां भाई परमानन्द जी ने अपनी पुस्तक ‘‘वीर वैरागी” की भूमिका में ‘दो शब्द’ शीर्षक देकर लिखीं हैं। पाठक यदि वीर बन्दा वैरागी का यह जीवन चरित्र पढ़ेगे तो पायेंगे की वीर बन्दा बैरागी का जीवन हिन्दू जाति के एक महान रक्षक का जीवन था। उनको स्मरण रखना और उनकी पूरी जीवन कथा स्वयं पढ़ना व अपनी सन्तानों को पढ़ाना वैदिक धर्म एवं संस्कृति की रक्षा में सहायक हो सकता है। जो जाति अपने कीर्तिवान एवं यशस्वी महान पूर्वजों को विस्मृत कर देती है वह भी इतिहास में विलुप्त हो सकती है। हम आशा करते हैं कि आर्यसमाज और हिन्दू जाति के नेता वीर बन्दा वैरागी के जीवन से आर्य हिन्दू जाति को अवगत करायेंगे और इनकी स्मृति को अक्षुण बनाये रखने के हर सम्भव प्रयास करेंगे।
‘वीर वैरागी’ पुस्तक का यह छठा संस्करण सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली ने सन् 1984 में प्रकाशित किया था। पुस्तक में मात्र 118 पृष्ठ हैं। आर्य प्रकाशकों को इस पुस्तक का नया संस्करण प्रकाशित करना चाहिये और प्रत्येक आर्यसमाज के सदस्य को इस पुस्तक को क्रय कर अपने परिवारजनों को पढ़ाने के साथ अपने इष्ट मित्र व सम्बन्धियों को भी इसे पढ़ने की प्रेरणा करनी चाहिये। देश के महान सपूत भाई परमानन्द जी को भारत माता के वीर महान सपूत वीर बन्दा वैरागी का जीवन चरित्र लिखने के लिये कोटि कोट नमन।
–मनमोहन कुमार आर्य