माँ की महिमा
नव दुर्गा मात की महिमा है अपरंपार,
नौ रूप है शक्ति तेरे जग की तू है पालनहार ।
सुनहरे रंगो की लेकर मन में फुहार,
अद्भूत सिंह पे होकर चली है सवार ।
रिश्तो में जोड़ देती है ऐसी कड़ियां,
खुशियो की लगा देती है झड़िया।
फूलों की बगिया को बहार से महकाती हो,
मन में अटूट ज्योति सा विश्वास जगाती हो ।
चमके तेरी चुनरी लश्कारे मारे बिंदिया,
गल में सोहे हार कर में खनके चूडियाँ।
चांद जैसी शीतल मखमल सी कोमल हो,
दुष्ट के लिए संहार भक्तो का प्यार हो।
तू ही जगदंबा ब्रह्मचारिणी और काली है,
तू ही दुर्गा सिद्धिदात्री और शेरोवाली है।
हे! अंबे मात तम को तुमने मिटाया है,
धन्य भाग्य हैं मेरे तभी उजियाला आया है।
जगतजननी अब आजाओ करने जन का उद्धार,
कोटि – कोटि तेरे पावन चरणों में है मेरा नमस्कार।
— शालू मिश्रा