गांधी जी के ‘राम , काम और नाम’
# १५०वीं जयंती विशेष
# गांधी के राम , काम और नाम
मोहन दास करमचंद गांधी ; एक कृशकाय शरीर में सिमटा विराट व्यक्तित्व।
इतना विराट कि नोबल पुरस्कार समिति ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि उन्हें पुरस्कृत न करना एक भूल थी , अपनी तरह का एकमात्र उदाहरण।
इतना विराट कि अपने जीवन का ९८ फीसद हिस्सा एक पराधीन देश में जी कर पर विश्व के लिए स्वाधीनता की प्रेरणा है।
इतना विराट कि आज विश्व अहिंसा दिवस के रूप में सारा संसार उनके सिद्धांतों को मान्यता देता है ।
इतना विराट कि अपनी स्थुल मृत्यु के सात दशक बाद भी वो न केवल समर्थकों वरण विरोधियों के लिए भी आज भी प्रासंगिक बना हुआ है ।
इस विराट व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नममन।
पर यह लेख आज उनके व्यक्तित्व पर नहीं वरन वर्तमान में उनके विचारों की प्रासंगिकता पर है ।
१. गांधी के’ राम ‘
गांधी जी राम के अनन्य भक्त थे । उनके दिनचर्या से जीवनचर्या तक राम सर्वत्र व्याप्त हैं। वो धर्मनिरपेक्षता के समर्थक थे पर राम को कभी इसमें व्यवधान नहीं माना। उनका स्पष्ट मत था राम धार्मिक नहीं देश की सांस्कृतिक विरासत हैं। ईशनिंदा को वो पुर्णत: गलत मानते थे । ईसाई धर्म से प्रारंभिक दुराव का कारण ईशनिंदा ही था ।
पर आजकल ईशनिंदा को प्रगतिवाद की कसौटी या प्रतीक माना जाने लगा है । राम अपने ही देश में अपने जन्मस्थान की लड़ाई लड रहे हैं । केवल इसलिए कि किसी को सियासी लाभ न मिल जाए उन्हें कपोल कथा का किरदार बता दिया गया । सबसे दुखद बात यह सब गांधीवाद की आड़ में किया गया।
गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है
‘ रामबाण वेंग्या ते हे जाणे ‘
काश लोग इस मर्म को समझें ।
२. गांधी के ‘ काम ‘
स्वच्छता –
गांधी जी सामुदायिक स्वच्छता के प्रति अतीव सजग व आग्रही थे । दक्षिण अफ्रीका में प्रारंभिक संघर्ष से लेकर अंतिम समय तक, टॉल्सटाय आश्रम से सेवाग्राम तक उन्होंने सदैव इसे अपने कार्यक्रमो में वरीयता पर रखा । किन्तु १९४८ में उनके शरीर के साथ साथ इस विषय को भी मुखाग्नि दे दी गई ।
सौभाग्य से २०१४ में गांधी जयंती पर ही इसका पुनर्जन्म हुआ और उनका ही आशीर्वाद है कि इस वर्ष इसी स्वच्छता अभियान के लिए हमारे राष्ट्र प्रधान को अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला ।
खादी –
गांधी जी के मुख्य अस्त्रों में से एक था खादी । खादी प्रतीक था स्वाभिमान , स्वावलंबन , स्वदेशी और स्वरोजगार का । यह भी गांधी जी के बाद औपचारिकता मात्र बन कर रह गया था । पर अब आशा फिर जागी है। पिछले पांच सालों में खादी बिक्री २०१४ के १३०० करोड़ के मुकाबले लगभग ढाई गुना बढ़ कर ३२०० करोड़ तक पहुंच गया है ।
भाषा –
गांधी जी ने हिंदी को सदैव देश में भाषायी सेतु के रूप में देखा । इसे राष्ट्रीय एकता की नींव माना।
इसी हिंदी को वैश्विक संसद ( संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा ) में अटल जी लेकर गए और आज तमाम राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह गर्व के साथ कहीं सुनी जा रही है ।
ऐसे अनेक काम है जो गांधी जी के विचारों, सपनों में थे पर हमने उन्हें भुला दिया था ।
३. गांधी के ‘ नाम ‘
केवल यही एक चीज जो कभी विस्मृत नहीं हुआ । न आम भारतीय के मन में न सत्ता के प्रतिष्ठानों में । अन्यान्य सड़कें , भवन , प्रतिष्ठान और योजनाएं इनके नाम पर बनी । पर इनमें भी इनके विचारों का अभाव रहा । गरीबों की योजनाओं का दस प्रतिशत ही गरीब तक पहुंचा नब्बे प्रतिशत तो नाम वालों के पास ही रह गया ।
आज जब हम गांधी जी की १५०वीं जयंती मना रहे हैं तो आवश्यकता है कि हम गांधी के नाम वालों और काम वालों को पहचाने ।
गांधी जी की के संदर्भ में एक बात हमेशा कही जाती है
” गांधी जी व्यक्ति नहीं विचार थे ।”
व्यक्ति गांधी जी के हत्यारे को तो सजा मिल गई , ज़रूरत है उनके विचारों की हत्या करने वालों की भी पहचान हो ।
यही समय है कि हम गांधी जी को ” उपनाम ” के रूप में नहीं ” उदाहरण ” के रूप में अपनाएं ।
समाप्ति से पहले देश के सच्चे सपूत और कांग्रेस के अंतिम सच्चे गांधीवादी नेता
पं. लाल बहादुर शास्त्री जी को भी कोटि-कोटि नमन ।
जय श्रीराम
समर नाथ मिश्र
रायपुर