कुंडलिया
सूत उलझता ही गया, मुख से निकला राम।
पदचिन्हों पर आज भी, मचा हुआ संग्राम।
मचा हुआ संग्राम, काम का चरखा चौमुख।
कात रहे सब सूत, सपूत अपनों से बिमुख।
कह गौतम कविराय, नमन हे भारती दूत।
लगे न मन में गाँठ, सुंदर था चरखा सूत।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी