जन -सहयोग और जन -सहभागिता के संकल्प से स्वच्छता का सपना साकार होगा
स्वच्छता एवं स्वच्छता संबंधी व्यवहार को मजबूत बनाने के लिए जन- सहयोग और जन -सहभागिता की नितांत आवश्यकता है | ताकि हर गाँव -शहर स्वच्छ होकर स्वच्छ भारत का सपना साकार कर सकें | देखा जाए तो पर्यावरण को स्वच्छ को बनाने में छोटी छोटी बातों पर अमल कर सहयोग कर सकते है | जैसे सिगरेट के टोटे जब फेके जाते है तो उनमें तंबाकू का एक हिस्सा जुड़ा होता है जिसमे निकलने वाला निकोटिन भी हमारे पर्यावरण को जहरीला बनाता है।महज 8या 10 मिनट तक के परोक्ष धूम्रपान से व्यक्ति के रक्तचाप में वृद्धि, ह्रदय की धड़कनों में वृद्धि, खून की नलिकाओं में सिकुड़न जैसे घातक प्रभाव पड़ते है।अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघटन के अनुसार इस प्रकार के परोक्ष धूम्रपान के कारण विश्व भर में प्रतिवर्ष दो लाख व्यक्ति मृत्यु का शिकार होते है ।ग्लोबल यूथ टोब्बेको सर्वे के अनुसार परोक्ष धूम्रपान से 36.4प्रतिशत बच्चे घरों में धुएँ से प्रभावित हो रहे है और विश्व मे70 करोड़ बच्चों को निष्क्रय धूम्रपान का शिकार होना पड़ रहा है।दुनिया भर में हर साल4.5 लाख करोड़ सिगरेट के टोटे कश लगाने के बाद फेक दिए जाते है। टोटे औऱ धूम्रपान का धुँआ पर्यावरण औऱ इंसान की सेहत बिगाड़ रहा है।खुशहाल जिंदगी जीने के लिए उत्पाद पर लिखी चेतावनी को भी गंभीरता से लेना होगा।ताकि स्वच्छ पर्यावरण निर्मित हो | एक जानकारी के मुताबिक नासा के वैज्ञानिक थॉमस पूरे का कथन है की फ़िलहाल जिस गति से पृथ्वी का वायुमंडल लिक हो रहा है ,उस हिसाब से एक से डेढ़ अरब साल में वायु मंडल पूरी तरह खत्म हो जाएगा | वायु मंडल को विषाक्त होने से बचाना चाहिए ताकि ओजोन पर्त सुरक्षित बनी रह सके |धरती या किसी ग्रह का वायुमंडल उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के कारण बंधा रहता है | इस बंधे हुए वायुमंडल के बाहर अंतरिक्ष में कुछ ऐसी घटनाएँ होती है,जिसके कारण वायुमंडल की कुछ वायु गुरुत्वाकर्षण को तोड़कर अंतरिक्ष में विलीन हो जाती है | इस प्रक्रिया को ‘ओरेरा कहा जाता है |पृथ्वी के रहवासियों को कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को कम करना होगा|वृक्षारोपण को ज्यादा संख्या में रोपण किया जाना होगा | ताकि वायु मंडल बना रहे।वृक्ष भी आक्सीजन प्रदान करते है। वायु मंडल से ही धरती के रहवासी सुरक्षित रह सकते है।लकड़ी की कमी इस बात की इशारा करती है कि लकड़ी निर्मित कई चीजें ज्यादातर प्लास्टिक से निर्मित होकर उपयोग बतौर काम आने लगी |किंतु प्लास्टिक वैसे ही पर्यावरण का दुश्मन है साथ ही स्वास्थ्य में भी विषैलापन लाता है|लोगो को भी चाहिए की पर्यटन स्थलों पर गंदगी .कूड़ा-करकट ना फैलाए ,दीवारों पर कुछ ना लिखे|क्योकि सोंदर्य निहारने ,ऐतिहासिक महत्व को जानने,स्थापित शिल्पकला ,स्थानीय कला को पहचानने के लिए और दो पल सुकून पाने के लिए लोग आते है| स्वच्छ पर्यटन सभी जगह विकसित हो ऐसा स्वच्छता का कार्य जागरूकता से करना होगा ।ताकि पर्यटकों को एवं फिल्म निर्माताओं को म प्र की पर्यटन स्थलों का आकर्षण दिलों में जगह बना सके ।
— संजय वर्मा ‘दॄष्टि’