बे-तनख़्वाह बस इसी काम पर रख लीजिए हमें
आपकी हँसी बिन सके ,आपकी ख़ुशी बिन सके
बे-तनख़्वाह बस इसी काम पर रख लीजिए हमें
आपको सँवारने में हम भी कुछ तो सँवर जाएँगे
मत सोचिए, किसी भी दाम पर रख लीजिए हमें
जल कर भी आपकी शफ़क़त* को रोशन रखेंगे
अपने घर में लौ के नाम पर ही रख लीजिए हमें
कोई भी कमी तो नहीं आपके हुश्न में या खुदाया
होंठों के छलकते जाम पर ही रख लीजिए हमें
निगाहें उठे तो दशहरा, निगाहें झुके तो दिवाली
निगाहों के ऐसे सुबह -शाम पर रख लीजिए हमें
शफ़क़त*-मोहब्बत
— सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन