कविता
जिस दिन चांद की रोशनी ज्यादा होती है,
उसी दिन उसका दाग ज्यादा चमकता है।
चाँद अक्सर सोचता है,
इस रात के अँधेरे में,
इस दाग के साथ दर्द को भी छुपा लूंगा!
पर, पता नहीं हर बार क्यूँ वो भूल जाता है!
की सूरज आके,
उसी अंधेरे को मिटा के,
चाँद को अपनी बाँहों में सुला देता है।
और हर सुबह को,
बस ऐसे ही रात ख़त्म कर देता है।
जिस्म से भले दूर हो दोनों,
पर चाँद के जज़्बात,
सूरज जीतने कोई नहीं समहता है।
इसीलिए तो लोग कहते है,
चाँद, सूरज की रोशनी से चमकता है।।
पर पता नहीं,
यह बात चाँद क्यूँ नहीं स्वीकार करता!
और हर बार खुद को है छुपाता फिरता!
“शायद चाँद इसका जवाब खुद ही दे?”