दो बाल कविताएँ
आओ यार
स्वेटर मफलर रजाई ।
अजी तुम कहाँ हो भाई ।
ठण्ड लगी है मुझे जी ।
कुछ नहीं अब सूझे जी ।
छुपे कहाँ हो भाई ।
दिखो जहाँ हो भाई ।
अपने साथ रखूँगा तुम्हें ।
कुछ नहीं कहूँगा तुम्हें ।
मैं तुम्हारे साथी प्यारे ।
बड़े भले चंगे न्यारे ।
आओ यार करो भलाई ।
स्वेटर मफलर रजाई ।
( 2 )
फसल धान की
लह – लहाती फसल धान की ।
निखरतीं खुशियाँ किसान की ।
हरे – भरे मेड़ करते बड़ाई ,
खेतों की इस शान की ।
यह है एक श्रम की निशानी ,
धरती के मान – सम्मान की ।
किसान करते इसकी पूजा ,
जैसे करते हैं भगवान की ।
इक मीठी – महक होती इसमें ,
माटी छत्तीसगढ़ महान की ।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”