धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

असत्य पर सत्य की जीत का पर्व विजयदशमी 

भारतीय हिंदू संस्कृति में पर्वो, त्योहारों, मेलो की एक लंबी परंपरा देखने को मिलती है ।उसी परंपरा में असत्य पर सत्य की जीत का पर्व विजयदशमी जिसे  दशहरा भी कहते हैं , अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है । इस पावन पर्व का अपना ही धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है ।इसी दिन कुछ लोग नए कार्य का प्रारंभ करते हैं और इसी दिन शास्त्र पूजा भी की जाती है । प्राचीन काल में राजा, महाराजा इस दिन विजय की प्रार्थना कर रणभूमि के लिए प्रस्थान करते थे। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों जैसे क्रोध, लोभ, काम ,मोह, मद, आलस्य, अहंकार , हिंसा ,चोरी जैसे अव गुणों से दूर रहने की प्रेरणा देता है। दशहरा या दसेरा शब्द दश (दस) एवं अहन् से बना है ।दशहरा उत्सव की उत्पत्ति के विषय में ओर कई मान्यताएं भी जुड़ी हैं ।कुछ लोगों का मानना है कि यह कृषि का उत्सव हैं।दशहरे के पर्व का एक संस्कृत पहलू भी हैं । इसका संबंध नवरात्रि से भी है ,क्योंकि नवरात्रि के उपरांत ही यह पर्व मनाया जाता है  । दशहरा इस दिन श्री राम ने रावण का वध किया था । हिंदू संस्कृति के पौराणिक ग्रंथों के अनुसार लंकापति रावण भगवान श्री राम की पत्नी देवी सीता का अपहरण छल से करके ले गया था ।भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए 9 दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन रावण का वध किया ,इसलिए श्री राम की विजय के प्रतीक स्वरूप इस पर्व को विजयदशमी कहां जाता है ।श्रीराम ने इस दिन रावण के अहंकार को तोड़कर यह शिक्षा दी कि प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में अहंकार, लोभ ,लालच और अत्याचारी प्रवृत्तियां त्याग कर मानव मात्र की सेवा के लिए जीवन जीना चाहिए ।आज हम रावण के पुतले बनाकर जलाते हैं पर अपने भीतर के रावण को जलाने की कोशिश नहीं करते। उस युग में सिर्फ एक रावण था, पर इस युग में कितने रावण पैदा हो गए हैं ,इसके लिए कौन जिम्मेदार है ,इसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं हमारी संकुचित सोच जिम्मेवार हैं । लंकापति रावण को अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया था ,उसे लगता था कि उसे कोई जीत नहीं सकता। उसी का दमन करने के लिए श्री राम जी ने रावण से युद्ध किया और उसका वध किया ।इस युग के रावण बहुत भयानक है,वो हमारे भीतर हैं हमारे आसपास है। अगर हमें ऐसे रावण से निपटना है, तो हमें स्वयं सजग और सचेत होना होगा ,क्योंकि एक सामान्य नागरिक के सचेत होने से समाज ,देश और राष्ट्र तरक्की कर सकता है ।चलो आज हम सब एक संकल्प करते हैं कि हम श्री राम जी जैसा बनने का प्रयास करेंगे, क्योंकि श्री राम जी जैसा बन कर ही राम राज्य की स्थापना की जा सकती है
अमित डोगरा

अमित डोगरा

पी एच.डी (शोधार्थी), गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर। M-9878266885 Email- [email protected]