सामाजिक

उच्च शिक्षा में पिछड़ता भारत 

टाइम्स हायर एजुकेशन की वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2020 में दुनिया के शीर्ष 300 विश्वविद्यालयों की सूची में भारत का एक भी विश्वविद्यालय जगह नहीं बना पाया है। इस बार शीर्ष 500 विश्वविद्यालयों की सूची में भारत के 6 संस्थानों को जगह मिली है। जिसमें आईआईटी रोपड़ और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु को समान रैंक पर रखा गया है। आईआईटी रोपड़ ने पहली बार में ही टॉप 350 में जगह बनाई है। हालांकि पिछले साल जहां भारत के पांच विश्वविद्यालय इस सूची में शामिल थे, तो इस बार इनकी संख्या बढ़कर छह हो गई है। इस सूची में इंग्लैंड स्थित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी शीर्ष स्थान पर है, तो वहीं अमेरिका के कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी को दूसरा स्थान मिला है। इंग्लैंड का ही कैंब्रिज विश्वविद्यालय दूसरे से तीसरे नंबर पर खिसक गया है। एशिया की बात करें तो इस सूची में चीन के दो विश्वविद्यालयों को जगह मिली है। इनमें सिंघुआ यूनिवर्सिटी को 23वीं रैंकिंग मिली है, तो वहीं पीकिंग विश्वविद्यालय को 24वीं रैंकिंग मिली है।
गौरतलब है कि टाइम्स हायर एजुकेशन की ग्लोबल यूनिवर्सिटी रैंकिंग में कुल 92 देशों के 1300 विश्वविद्यालयों ने भाग लिया था। सूची के अनुसार आईआईएससी बेंगलुरु की रैकिंग में गिरावट आई है। पिछली बार शीर्ष 300 में शामिल ये संस्थान इस बार शीर्ष 350 में खिसक गया है। इसके पीछे का कारण शोध का माहौल, पढ़ाई का माहौल और गुणवत्ता, औद्योगिक आय के पैमानों में सुधारों पर जोर नहीं देना है। आईआईएससी के अलावा 6 और भारतीय विश्वविद्यालयों की रैकिंग में भी इस साल गिरावट आई है। हालांकि आईआईटी दिल्ली, आईआईटी खड़गपुर और जामिया मिल्लिया समेत कुछ अन्य विश्वविद्यालयों की सूची में भी सुधार हुआ है। लेकिन समग्र रूप से आकलन करने पर उच्च शिक्षा में भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। सूची में शीर्ष स्थान पर कब्जा करने वाले अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, सिंगापुर, ब्रिटेन व ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की आर्थिक प्रगति को वहां की उच्च शिक्षा से जोड़कर देखा व समझा जा सकता है। इन देशों में शोध व अनुसंधान पर सर्वधिक ध्यान दिया जाता है। भारत में इसका विपरीत है। यहां शोध व अध्ययन की गुणवत्ता महज येन-केन-प्रकारेण डिग्री हासिल करने तक ही सीमित है। शोध से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि ब्रिक्स देशों में केवल भारत ही ऐसा देश है, जहां शोध पर कुल जीडीपी का मात्र 0.9 फीसद खर्च किया जाता है। दूसरी ओर चीन में यह 1.9 फीसद, रूस में 1.5 फीसद, ब्राजील में 1.3 फीसद तथा दक्षिणी अफ्रीका में एक फीसद खर्च होता है। इसी वजह राष्ट्रीय उच्च शिक्षा मूल्यांकन परिषद ने भी अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह साफ किया है कि भारत में 68 फीसद विश्वविद्यालयों और 90 फीसद कॉलेजों में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता या तो मध्यम दर्जे की है या दोषपूर्ण है। इन संस्थानों के 74 फीसद डिग्रीधारी छात्र बेरोजगार है। भारत में 60 फीसद विश्वविद्यालयों और 80 फीसद कॉलेजों से निकले छात्र के पास न तो तकनीकी कौशल है और न ही भाषा की दक्षता है। यही कारण है कि ऐसे छात्र उचित रोजगार नहीं पा सकते। सिर्फ कुछ आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम और सरकारी कॉलेजों के भरोसे देश उच्च शिक्षा में तरक्की नहीं कर सकता। सरकार के पास निजी संस्थानों और विश्वविद्यालयों के लिए बेहतर कार्ययोजना होनी चाहिए।
हमने यह समझने में बहुत देरी कर दी कि अकादमिक शिक्षा की तरह अपनी नई पीढ़ी को बाजार की मांग के मुताबिक उच्च गुणवत्ता वाली स्किल एजुकेशन देना भी हमारी लिए जरूरी है। एशिया की आर्थिक महाशक्ति दक्षिण कोरिया ने डेवलपमेंट के मामले में चमत्कार कर दिया है। साल 1950 तक विकास के स्तर और विकास दर, दोनों ही मामलों में दक्षिण कोरिया हमारे मुकाबले कहीं नहीं था, लेकिन आज उसकी गिनती भारत के एक पायदान आगे वाले देशों में होती है और विकास के कुछ पैमाने पर वह जर्मनी को पीछे छोड़ चुका है, तो इसमें बड़ी भूमिका कौशल से जुड़ी शिक्षा की है। निश्चित रूप से कौशल विकास को बढ़ावा दिए बिना देश विकसित व आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। नि:संदेह भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी परिवर्तनों की आवश्यकता है। उच्च शिक्षा का हमारा एक विद्यार्थी लगभग 40 घंटे प्रति सप्ताह कॉलेज के लेक्चर सुनने और प्रायोगिक कार्यों वगैरह में लगा देता है। क्या उच्च शिक्षा के विद्यार्थी के लिए इतना काफी है। क्या हमारी उच्च शिक्षा व्यवस्था हमारे विद्यार्थियों को कुछ नवीन सोचने-समझने और करने के लिए सही दिशा और पर्याप्त साधन दे पा रही है? ऐसे कई सवाल आज ही नहीं, बल्कि लम्बे समय से चलते आ रहे हैं, जिन पर जल्द ही कोई कदम उठाने की आवश्यकता है। उच्च शिक्षा के स्तर पर आकर शिक्षा का उद्देश्य मात्र क्लास रूम के जरिए विद्यार्थियों को पढ़ाना नहीं होता, बल्कि इससे ज्यादा उन्हें यथार्थ के स्तर पर उतारकर दुनिया से सिखाना और तैयार करना होता है। अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों में विद्यार्थी मात्र 15 घंटे क्लास रूम लेक्चर में लगाता है। बाकी का समय वह स्व-अध्ययन और अप्रत्यक्ष रूप से कुछ ग्रहण करने में लगाता है।
हमारे देश में तो फैक्टरी एक्ट में भी 48 घंटे प्रति सप्ताह से अधिक काम की सिफारिश नहीं की जाती। तो क्या हमारे विद्यार्थी एक श्रमिक से भी अधिक काम में लगाए रखने वाले बंधुआ हैं, जिनके पास अपना कुछ नया सोचने और करने के लिए समय ही नहीं है? विदेशों में 3 घंटे क्लास रूम, लेक्चर लेने वाले विद्यार्थी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने क्लास रूम लेक्चर के हर घंटे के साथ दो घंटे और लगाकर बाहरी जगत से कुछ सीखेगा। इस प्रकार वहां के विद्यार्थी लगभग 45 घंटे प्रति सप्ताह अध्ययनरत रहते हैं। हमारे देश में यदि क्लास रूम लेक्चर, ट्यूटोरियल्स या प्रायोगिक काम मिलाकर एक विद्यार्थी 40 घंटे व्यतीत करता है, तो इस तरह से हम भविष्य के लिए क्या तैयार कर रहे हैं? शायद यही कारण है कि असीम प्रतिभाओं के होते हुए भी देश में शोध एवं अनुसंधानों की इतनी कमी है। उच्च शिक्षा में चल रहे इस घिसे-पिटे ढर्रे से बाहर निकलने की बहुत जरूरत है। सबसे पहले तो हमें क्लास रूम शिक्षा के घंटों को कम करके 15 तक सीमित करना होगा। यह समझना होगा कि विद्यार्थी के लिए क्लास रूम शिक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण सीखना है। दूसरा पक्ष उच्च शिक्षा से जुड़े शिक्षकों के लिए 40-45 घंटे प्रति सप्ताह पढ़ाने का भार होना है। अगर प्रोफेसर, लेक्चरर, एसोसिएट प्रोफेसर वगैरह पर इस प्रकर का बंधन लाद दिया जाएगा, तो जाहिर है कि विद्यार्थी को भी अपने वे घंटे शिक्षक को देने होंगे। उच्च शिक्षा का एक शिक्षक 15 घंटे में भी विद्यार्थियों को उच्च गुणवत्ता के जरिए वही पढ़ा सकता है, जो वह 45 घंटों में पढ़ाता है। शिक्षा और उद्योगों के इनपुट और आउटपुट में बहुत अंतर होता है। शिक्षा का क्षेत्र उद्योग की तरह नहीं है, जहां अधिक घंटे तक काम करके अधिक उत्पादन किया जा सके। शिक्षा में तो घंटे चाहे कम हों, काम की गुणवत्ता उत्कृष्ट होनी जरूरी है। परिणाम तभी बेहतर हो सकते हैं। अत: भारत सरकार को शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए तुरंत कदम उठाने की ज़रूरत है, क्योंकि एशिया के ही दूसरे शिक्षण संस्थानों से भारतीय विश्वविद्यालयों को कड़ी चुनौती मिल रही है।
— देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - [email protected]