रात्रि के कालभुजंग तमस में
जुगनू का क्या सामर्थ्य
फिर भी जुगनू दमकते हैं
वह जगमगाते हैं क्योंकि
यह उनकी प्रकृति है
जब असंख्य जुगनू टिमटिमाते हैं तो
अंधेरे परास्त हो जाते हैं
मैं तुमको सोचती हुई
जाने कितने शब्दकोशों की
सुनहरी जिल्दें खोलती हुई
अन्वेषण कर रही हूं शब्दों का
ताकि तुम्हारे अंदर द्वंद मिटें
और परम लक्ष्य के वृक्षखंड बढ़ें
अंतस साक्षी बन सके स्व-बोध का
‘कुछ’ करना बहुत छोटा होता है
अगर ‘कुछ’ होता नहीं तुमसे
ऐसे में ‘करना’ छोड़ दो
‘ना करना’ अनंत, अपार होता है
‘सब’ उसी में हो जाता है
ऐसे ही चैतन्य का अटकाव
धीरे-धीरे खंडित हो जाता है
तुम्हारा पराक्रम किसी अतलस्पर्श बिंदु में
मूलाधार के पास विश्राम पाता है
दृष्टिकोण संपोषित करो और
आत्म नियोजन की ओर बढ़ो
उसके लिए पैरों का होना जरूरी नहीं
आत्म उपलब्धि की शाश्वत साधना करते रहो
अंतर्तत्व के संग्राम में विजयी बनो
उसके लिए हाथों का होना जरूरी नहीं
चेतना को उध्वगामी कर प्रचंड गति दो
चंचल चलित ज्वाला को प्रज्वलित करो
तुम शिखर पर ‘सहस्त्रदल कमल’ देख पाओगे
उसके लिए आंखों का होना जरूरी नहीं
सितारों सा जगमगाए तुम्हारा एकाकी तपस्थल
निष्ठजड़ तंतु से बंधे मत रहो
अश्वपति हो तुम
बुद्धत्व की ओर बढ़े चलो
— अनुजीत इकबाल