दोहा द्वादसी
“दोहा द्वादसी”
रावण के खलिहान में, चला राम का तीर।
लंका का कुल तर गया, मंदोदरी अधीर।।-1
दश दिन के संग्राम में, बीते चौदह साल।
मेघनाथ का बल गया, हुआ विभीषण लाल।।-2
कुंभकरण सोता रहा, देख भ्रात अनुराग।
सीता जी की आरती, हनुमत करते जाग।।-3
कैकेई को वर मिला, सीता को वनवास।
राम ढूढ़ते जानकी, खग मृग वन में खास।।-4
सोने की लंका बनी, शिव हैं परम फ़क़ीर।
मंशा रावण की मरी, घायल हुआ ज़मीर।।-5
तुलसी बाबा कह गए, एक नाम श्रीराम।
सात कांड जस सागरा, सुंदर कांड सु-नाम।।-6
किष्किंधा सुग्रीव का, हनुमत मुख श्रीराम।
लखन लाल सिय साथ में, कहाँ भरत सुखधाम।।-7
चरण पादुका सिर लिए, भ्राता भरत अधीर।
कैसी होंगी जानकी, कैसे लक्ष्मण वीर।।-8
कब कलंक किसको लगे, कौन सका है जान।
तुलसी सीताराम भज, माटी में सम्मान।।-9
जला जला कर थक गए, पुतला हुआ न खाक।
अर्थी भी दमदार थी, था रावण अति पाक।।-10
विजय पर्व पर खूब है, मची रावणी धूम।
ढ़ोल नगारा बंद है, है डी जे की बूम।।-11
ले लो आप बधाइयाँ, शुभकामना अनेक।
आभासी संसार ने, खोला द्वार विवेक।।-12
महातम मिश्र , गौतम गोरखपुरी