शरद यामिनी प्रगटे निधिवन
परमानंद गुण अद्वैत गोपाला
शीश मुकुट श्रवण मीन कुंडल
कंठ विभूषित वैजयंती माला
पीतांबर धारे आभूषण सजीले
कटि पर मधुर किंकिणि चंगी
नख से शिख सब अति सुंदर
वंशी लिए मुस्काये त्रिभंगी
उन्मुक्त भयीं समस्त ब्रज नारी
स्वामी, कुटुंब, भवन बिसारे
रासभूमि में आईं सखियां
श्याम विरह का क्षोभ निवारे
मुदित मन से नाचें गोपियां
अष्ट सखियां मधुर धुन गावें
श्री राधा झूल रही हिंडोला
कृष्ण अधर धर वेणु बजावें
अति सौम्य शीतलप्रद रात्रि
शरद पूर्णिमा का उज्ज्वल चंदा
दर्शन मदन गोपाल मनोहर
महारास रचाये नंद का नंदा
मोहित तरु तमाल खग धेनु
सखियों के घूंघट-पट छूटे
विस्मित हुआ समग्र शशिमंडल
चौदह भुवन को मोहन लूटे
अधरपान परिरंभन सिंधु
प्रेममग्न सब सखियां सहेली
रति लीला में मस्त हुईं सब
प्रमोद वाटिका में हो रही केली
शिव शंकर वेष धरा गोपी का
हिय प्रेम का ताप उपजावे
कुमकुम, अंजन से सज्जित कर
गोपियां औघड़ शम्भू नचावें
— अनुजीत इकबाल