कविता

चलना जरा संभल के

रास्ते हैं क़ाफ़िर
मंजिलें हैं मुसाफिर
मुश्किल बहुत सफर है
चलना जरा संभल के

चंचल बड़ी है मंजिल
ठहरती नहीं है मंजिल
छोटी सी थी जो एक दिन
बढ़ती ही जा रही है मंजिल
मैं भागता जा रहा हूं
नहीं हाथ आ रही है मंजिल

बेशक, भागो इसके पीछे
तुम जब तक भाग पाओ
तुममें जोश है बहुत
मंजिलों को भी जताओ
यह मंजिले तो हैं मुसाफिर
ठहर कर नहीं रहेंगी
पर तुम ठहर गए तो
जिंदगी ही कहां रहेगी

रास्ते हैं क़ाफ़िर
सब ने झूठ बोला
यह मंजिल ही नहीं थी
जिस पर तू चल पड़ा अकेला
ठहर कर एक बार फिर से
तू इतना गौर कर ले
क्या रास्ते सही हैं
और मंजिलें भी वही हैं
जिन पर तुझको है जाना
और चाहा था तुमने हर पल
शिद्दत से जिनको पाना

रास्ते हैं काफिर
मंजिलें हैं मुसाफिर
मुश्किल बहुत सफर है
चलना जरा संभल के …

– आनंद कृष्ण

आनंद कृष्ण

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