लघुकथा

प्रेम के दो मोती

आँखों के सामने माया का वही खिलखिलाता हुआ चेहरा बार-बार आ-जा रहा था। इतनी पुरानी घटना, वह आज तक नहीं भूल पाई थी। उस दिन माया जब आकर उससे लिपटकर रो पड़ी थी। उसके पिताजी ने उसकी शादी उससे आयु में पंद्रह वर्ष बड़े आदमी से तय कर दी थी। वह भी तो कितना रोई थी। भगवान ! गरीबी का यह अभिशाप किसी को न दे।
माया का घर आ चुका था। कार रुकते ही वह तेज़ी से उतर कर बढ़ चली। जहाँ गेट पर वह पहले से ही खड़ी उसका इंतजार कर रही थी। आज भी वह बिल्कुल वैसी ही सहज और सौम्य नजर आ रही थी। “माया!” कहती हुई वह उसके गले से जा लिपटी। दोनों की आँखों से जैसे सावन-भादो की झड़ी लग गयी थी।
उसके हाथ में हाथ डाले जैसे ही वह अंदर पहुँची, आँखें चकाचौंध हो गयीं। बेशकीमती झाड़फानूस, ख़ूबसूरत पेंटिंग्स और धातु की मूर्तियों से सजा ड्राइंग रूम उसकी समृद्धि बयान कर रहा था। “और सुना विभा, तू कैसी है? इतने बरस के बाद तुझे देखकर मन अति प्रसन्न हो गया।”
वह अपलक उसे निहारती हुई बोली, “देख, तुझसे मिलना लिखा था न, इसीलिए तो तेरे शहर आने का बानक भी बन गया। मगर सच कहूँ, तेरे पति के न रहने की ख़बर सुनी तो जी न जाने कैसा हो गया?” उसका कहना था और माया की आँखों से दो मोती टपक पड़े।
“ओह! मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे रुला दिया ! मैं तेरा दुःख समझ सकती हूँ। एक तो, तेरे पति तुझसे उम्र में … और, अब …!”
“न-न ! जो तू समझ रही है, वैसा नहीं है। उन्होंने तो मुझे जो खज़ाना दिया, उसके लिए मैं सदैव ही उनके आगे नतमस्तक रहूँगी।”
“क्या मतलब, मैं समझी नहीं!”
“उनके साथ बंधकर ही तो मैंने जाना कि प्यार क्या है! उम्र, रूप, देह, दौलत और दिखावे से परे उन्होंने मुझे जो निश्छल प्रेम दिया। वह तो मुझे कभी अपने माता-पिता और भाई से भी न मिला।” विभा की आँखें आश्चर्य से फैल गयीं।
“उनसे ही तो मैंने जीवन के इस सत्य को जाना, प्रेम को किसी भी तराजू में नहीं तौला जा सकता, न ही उसे किसी पिंजरे में कैद किया जा सकता है।” वह उसके कहे एक-एक शब्द को जैसे आत्मसात कर रही थी। अचानक उसके मन का घायल पंछी पंख फड़फड़ाता पिंजरे से आजाद होने को बेताब उठा। काश ! जीवन के इस सत्य को हर कोई समझ पाता।
संशय के सारे बादल अब छँट चुके थे। माया की आँखों में तैरती समृद्धता को देखकर उसका मन अविभूत हो उठा। उसकी आँखों से भी दो मोती टपक पड़े। वह उसका हाथ थामकर, धीरे से बोली, “तू सच कह रही है, प्रेम शर्तों पर नहीं जिया जा सकता, वर्ना घुट-घुट कर मर जाता है।”

— प्रेरणा गुप्ता

प्रेरणा गुप्ता

१- नाम - प्रेरणा गुप्ता २- जन्म तिथि और स्थान - ५ फरवरी १९६२, राजस्थान ३ -शिक्षा - स्नातक संगीत ४ - कार्यक्षेत्र - संगीत ,समाज सेवा ,आध्यात्म और साहित्य ५ -प्रकाशित कृतियाँ - कुछ रचनाएँ पत्र - पत्रिकाओं एवं वेब पर प्रकाशित ६ - सम्मान व पुरस्कार - गायन मंच पर ७ - संप्रति - स्वतंत्र लेखन ८ - ईमेल - [email protected]