सच्ची आधुनिकता
सच्ची आधुनिकता
सुबह- सुबह सोसाइटी के पार्क में मॉर्निंग वॉक करते हुए मिसेज शर्मा की नजर मिसेज बैनर्जी पर पड़ी।
“हेलो मिसेज बनर्जी क्या बात है आप आजकल सोसाइटी की किटीज में नहीं दिख रहीं!”
“ऐसे ही मिसेज शर्मा मन नहीं करता अब।” मिसेज बनर्जी ने पीछा छुड़ाने वाले अंदाज में कहा।
“वैसे मिसेज बनर्जी कल मैंने देखा आपकी बहू देर रात घर आ रही थी, ऐसा अक्सर देखती हूँ। मैं तो कहती हूँ थोड़ा लगाम रखो बहू पर ये देर रात घर वापस आने का कौन सा टाइम है भई!” मिसेज शर्मा की बात सुनकर मिसेज बनर्जी थोड़ा मुस्कुराईं उनके चेहरे पर तीखी नजर गड़ाते हुए बोलीं—-
“आपने मेरी बहू को देर रात घर आते देखा होगा पर कभी-कभी मेरा बेटा भी तो देर रात घर आता है, आपने उसे नहीं देखा कभी?”
“मतलब?”
“मतलब ये मिसेज शर्मा..कि आप तो जानती ही हैं मेरे बेटा बहू दोनों ही इंजीनियर हैं अलग-अलग कम्पनियों में।”
“हाँ तो? भई बहू जॉब कर रही तो इसका मतलब ये तो नहीं कि आधी-आधी रात को घर आये?”
“क्यों नहीं आ सकती मिसेज शर्मा! जब बेटा को अचानक देरतक ऑफिस में रुकना पड़ सकता है तो बहू को क्यों नहीं, वो भी तो कर्मचारी ही है। और हाँ आप पूछ रहीं थीं ना कि मैं किटीज में क्यों नहीं आती तो बस यही समझ लीजिए आप जैसे सो कॉल्ड “मॉडर्न” लोगों से मेरी बननी थोड़ी मुश्किल है।” कहकर मिसेज बनर्जी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गयीं।