लघुकथा

लघुकथा – देने का सुख

अय्यान आज जिद पर अड़ा था कि उसे 20 रुपए वाला चाकलेट चाहिए। उसके पिताजी आलोक ने चाकलेट खरीदने के लिए रुपए देने से साफ मना किया। उसके रोने , चीखने – चिल्लाने पर भी आलोक पर कोई असर नहीं हुआ और वे किसी काम से घर के बाहर चले गए। अय्यान के दादाजी आत्माराम ने पोते को बहुत समझाया कि तुम्हारे दातों में दर्द रहता है , इसलिए चाकलेट की बजाय कोई और चीज खाना चाहो तो मैं तुम्हें 20 रुपए देने के लिए राज़ी हूं। लेकिन अय्यान अपनी जिद पर अडिग रहा। थक हारकर आत्माराम ने अनमने मन से रुपए दे दिए। 20 रुपए मिलते ही अय्यान रोना – धोना छोड़कर, चाकलेट खरीदने के लिए घर से बाहर निकल पड़ा।
अय्यान के थोड़ा आगे बढ़ते ही हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई। गली का दुकान बंद होने के कारण उसने बाज़ार का रुख किया। उसने देखा , एक चाय की टपरी पर एक महिला बारिश में भीगी खड़ी थी। उसकी गोद में एक बच्चा था जोकि रो रहा था। महिला उस चायवाले से बिनती करते कह रही थी, ‘ मेरा बच्चा भूख से तड़फ रहा है। मेरे पास दूध खरीदने के लिए भी पैसे नहीं। बच्चे को थोड़ा सा दूध दे दो। मैं थोड़ी देर बाद रुपए दे दूंगी। ‘ महिला की गुहार पर दुकानदार ने सुनकर भी अनसुना कर दिया। आसपास कई लोग खड़े होकर चाय पी रहे थे , लेकिन महिला की गुहार का किसी पर कोई असर नहीं हुआ। महिला अब थंड के कारण थर – थर कांप रही थी। अय्यान ने अपने पिताजी से सुन रखा था कि नेपल्स शहर में ‘ सस्पेडेंट कॉफी ‘ का प्रचलन शुरू किया गया , जोकि आज दुनिया भर में सुप्रसिद्ध हुआ है। लोग होटल में अतिरिक्त दाम देते हैं कॉफी का ताकि किसी ज़रूरतमंद को होटलवाला मुफ्त में कॉफी पिला सके। अय्यान एक बार अपने दादाजी के साथ एक होटल में गया था। दादाजी ने पूरा बिल चुकाने के बाद , वहीं होटल में रखे डिब्बे में भी कुछ रूपए डाले थे। अय्यान ने जिज्ञासावश पूछा था तो दादाजी ने उसे बताया था कि कभी कोई ज़रूरतमंद भूखा इस होटल में आए तो होटलवाला इन रुपयों से उसे भोजन खिला सके। अय्यान को यही सब याद आया तो तुरंत चायवाले के पास पहुंचा। उसे 20 रुपए का नोट थमाते , महिला की तरफ इशारा करते उन्हें एक कप चाय और दूध देने को कहा। महिला बच्चे और चायवाले के इशारों से समझ गई कि बच्चे के दूध के लिए अय्यान ने रुपए दिए हैं। छोटे से बच्चे का बड़ा दिल देखकर गद्‌गद्‌ हुई। महिला ने इशारे से अय्यान को अपने पास बुलाकर आशीर्वाद दिया। नम आंखों से अय्यान को दुआएं भी दी। अय्यान ने 20 ख़र्च करके जो ख़ुशी ख़रीदी थी , वो अनमोल थी। वो ख़ुशी – ख़ुशी उछलता – कूदता अपने घर की ओर चल पड़ा।
-– अशोक वाधवाणी

अशोक वाधवाणी

पेशे से कारोबारी। शौकिया लेखन। लेखन की शुरूआत दैनिक ' नवभारत ‘ , मुंबई ( २००७ ) से। एक आलेख और कई लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ नवभारत टाइम्स ‘, मुंबई में दो व्यंग्य प्रकाशित। त्रैमासिक पत्रिका ‘ कथाबिंब ‘, मुंबई में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ आज का आनंद ‘ , पुणे ( महाराष्ट्र ) और ‘ गर्दभराग ‘ ( उज्जैन, म. प्र. ) में कई व्यंग, तुकबंदी, पैरोड़ी प्रकाशित। दैनिक ‘ नवज्योति ‘ ( जयपुर, राजस्थान ) में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ भास्कर ‘ के ‘ अहा! ज़िंदगी ‘ परिशिष्ट में संस्मरण और ‘ मधुरिमा ‘ में एक लघुकथा प्रकाशित। मासिक ‘ शुभ तारिका ‘, अम्बाला छावनी ( हरियाणा ) में व्यंग कहानी प्रकाशित। कोल्हापुर, महाराष्ट्र से प्रकाशित ‘ लोकमत समाचार ‘ में २००९ से २०१४ तक विभिन्न विधाओं में नियमित लेखन। मासिक ‘ सत्य की मशाल ‘, ( भोपाल, म. प्र. ) में चार लघुकथाएं प्रकाशित। जोधपुर, जयपुर, रायपुर, जबलपुर, नागपुर, दिल्ली शहरों से सिंधी समुदाय द्वारा प्रकाशित हिंदी पत्र – पत्रिकाओं में सतत लेखन। पता- ओम इमिटेशन ज्युलरी, सुरभि बार के सामने, निकट सिटी बस स्टैंड, पो : गांधी नगर – ४१६११९, जि : कोल्हापुर, महाराष्ट्र, मो : ९४२१२१६२८८, ईमेल [email protected]