समीक्षा – लघु उपन्यास : कुछ नहीं
लेखक मनमोहन भाटिया द्वारा रचित ’’कुछ नहीं’’ एक लघु उपन्यास है। यह उपन्यास वास्तव में लघु होते हुए भी उपन्यास के सभी मापदण्ड पुरे करता है। इस उपन्यास की कहानी में वर्तमान, भूतकाल एवं भविष्य के दृश्य कहानी में उभरते है। कहानी हमेशा सजीव रहती है। कहानी एक तारतम्यता लिये हुए है। कहानी में कहीं पर भी भटकाव की स्थिति नहीं हैं।
सही मायने में यह उपन्यास वर्तमान में वैवाहत्तर रिश्तों में बदलाव आने व विवाह विच्छेद जैसी स्थितियों पर कटाक्ष करता है। यदि वैवाहिक रिश्ते मजबुत है तो उसे आजीवन आनन्दित होकर निभाया जा सकता है। पति-पत्नि के विश्वास को मजबुती के साथ सुखमय जीवन जीते हुए अपने परिवार को साथ लेकर चला जा सकता है। विवाह पूर्व प्रेम संबंध के बीते छोटे पल व्यक्ति को जब याद आते है तो वह क्षणिक खुशी महसुस कर सकता है लेकिन जब उसके वैवाहिक रिश्ते मजबुत है तो उसे कभी भी किसी भी उम्र के पडाव पर भटका नहीं सकते है।
कहानी में एक किरदार जो विवाह के 23 वर्षो के पश्चात अपने काॅलेज के दिनों में रही मित्र से अचानक किसी मोड़ पर मिल जाता है लेकिन उसे पहचान नहीं पाता जबकी उसकी मित्र उसे पहचान लेती है। क्षणिक वार्तालाप पर उसे पूरानी बातें फिर याद आ जाती है। वही काॅलेज के दिन और काॅलेज के सारे घटनाक्रम उसके मस्तिष्क पर फिर उभर जाते है। 23 वर्ष पहले अलग बात थी लेकिन आज वे मित्र अपने जीवन में अलग स्थितियों में हैं जहाँ एक पुरूष मित्र अपने वैवाहिक जीवन से प्रसन्न है और उसका अपना भरा पुरा परिवार है। एक अच्छी नौकरी के साथ एक अच्छे पद पर है जबकि महिला मित्र जिसका नाम माया है वह मायाझाल कि तरह 23 वर्ष पूर्व उससे मिली दोनों में आकर्षण रहा लेकिन पुरूष ने कभी प्रेम का इजहार नहीं किया। एक प्रेमदिवस के दिन उसे अपने प्रेम और नौकरी में से किसीको चुनना था लेकिन उसने अपने कैरियर को प्राथमिकता दी। आज फिर वही महिला मित्र उस व्यक्ति को पाने का ख्वाब संजोये हुए उसे नजदीक लाने का प्रयास करती है लेकिन वह पुरूष अपने वैवाहिक जीवन को मजबुत रखते हुए उस महिला मित्र को फिर से नकार जाता है जैसे उसने 23 वर्ष पूर्व केवल एक शब्द ’’कुछ नहीं’’ के माध्यम से नकार दिया था।
इस उपन्यास में ’’कुछ नहीं’’ शब्द प्रमुख है जो इस उपन्यास का शीर्षक है। इस उपन्यास का यह शीर्षक भी बहुत सार्थक है। पाठक मात्र इस शीर्षक को पढ़कर कुछ भी नहीं समझ पाता है पुरी कहानी में भी कई बार यह शब्द आता है लेकिन कहानी के अंतिम पड़ाव पर इस शब्द की सार्थकता पता चलती है दिखने में यह कुछ नहीं लग रहा होता है लेकिन यह शब्द बहुत मायने रखता है। कहानी के प्रमुख पात्र के जीवन को हमेशा पटरी पर बनाये रखता है।
इस पुस्तक का कवर पेज बहुत अच्छा है जिसमें एक चित्र है एक व्यक्ति हाथों में गुलाब का गुलदस्ता लिये है और सामने एक मैट्रो ट्रेन है। उस आवरण को कहानी में दो बार देखा जा सकता है। यह आवरण न केवल सुन्दर वरन् बहुत सार्थक है। यह चित्र उपन्यास पढ़ने के पश्चात बहुत सजीव प्रतित होता है।
कहानी में आधुनिक शब्दों एवं आधुनिक वातावरण व संस्कृति की झलक मिलती हैं अंग्रेजी के शब्द हिन्दी में सहज स्वीकार है इसलिये हिन्दी भाषा का विकास होता रहता है पाठक अंग्रेजी के शब्दों को भी बहुत पसंद करता है इसमें नयापन हैं पाठक कंही पर भी रूकता नहीं है। पाठक पढ़ते समय महसुस करता है कि वह इसे पुरा एक समय में पढ़ ले। कहानी बहुत ही रोचक है। परिवार के सदस्यों के साथ वार्तालाप भी उसके सजीव जीवन को बताते है।
सम्पूर्ण कहानी को यहाँ नहीं रखा जा सकता यह काॅपी राईट का उल्लंगन होगा। पाठक जब स्वयं इस उपन्यास को पढ़ेगा तब वह हर शब्द एवं हर वकतव्य से रूबरू होगा और उसे भी लगेगा जैस वह स्वयं इन किरदारों में कंही रहा है कहानी उसे भी सजीव प्रतित होगी। कहानी से वह भली भांती सिख सकेगा और अपने वैवाहिक जीवन को मजबुत रखते हुए कभी भी किसी भी उम्र में उसे भटकने नहीं देगा। उपन्यास वास्तव में एक प्रेरणादायक है जो आज के समाज को जाग्रत करने की पुरी कोशिश करता है। हालात भले बदलते रहे लेकिन सही स्थिति का आकलन कर ही जीवन के फैसले लेने चाहिए।
पुस्तक का नाम : ’’कुछ नहीं’’
पुस्तक प्रकार : लघु उपन्यास
लेखक : मनमोहन भाटिया
प्रकाशन वर्ष : 2019
प्रकाशक : फलायड्रीम्स पब्लिकेषनस
पृष्ठ : 68
मूल्य : 120/-
— नितिन मेनारिया
जे-11, हरिदास जी की मगरी, उदयपुर
9413752497