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स्वच्छता एवं प्रकाश का पर्व दीपावली                     

दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों  दीप अर्थात दीया एवं आवली अर्थात् लाइन या श्रृंखला के मिश्रण से हुई है। दीपावली या दीवाली अर्थात् रोशनी का त्यौहार शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द) में प्रत्येक वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदु त्यौहार है ।भारत में प्राचीन काल से दीवाली को हिंदू कैलेंडर के कार्तिक मास में गर्मी की फसल के बाद एक पर्व के रूप में दर्शाया गया है ।दीवाली का स्कंद पुराण नामक संस्कृत के ग्रंथ में भी उल्लेख मिलता है:- दीए अर्थात दीपक को स्कंद पुराण के अनुसार सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है ।सूर्य जो जीवन के लिए उर्जा और प्रकाश का लौकिक दाता है। उपनिषदों की भी आज्ञा है :-तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात् अंधेरे से ज्योति और प्रकाश की ओर जाइए ।

9 वीं शताब्दी में संस्कृत आचार्य राजशेखर ने अपनी कृति काव्यमीमांसा में इसे दीपमालिका कह कर संबोधित किया है ,जिस समय घरों की पुताई की जाती है और रात में घरों को तेल के दीयों से सजाया जाता है। भारत की यात्रा करने वाले फारसी यात्री और सुप्रसिद्ध इतिहासकार अलबेरूनी ने दीपावली को कार्तिक माह में  चंद्रमा के दिन पर हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला  पर्व कहां है। भारतीय हिंदू परंपरा के अनुसार अयोध्या नरेश दशरथ के परम प्रिय पुत्र राम के14 वर्ष के बनवास के पश्चात अयोध्या आगमन से कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की रात्रि घी के दीयों की रोशनी से जगमगा उठी ,तब से आज तक भारतीय परंपरा में प्रत्येक वर्ष यह प्रकाश पर्व उल्लास और हर्ष से मनाया जाता है । इस पर्व को सिक्ख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों द्वारा भी मनाया जाता है ।

जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में भी मानते हैं तथा सिक्ख धर्म इसे बंदी छोड़ के रूप में मनाया जाता है। दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली पर्व में से एक माना गया है ।यह पर्व आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। भारतीयों  का अटूट विश्वास है कि सत्य की सदा विजय होती है और झूठ का नाश होता है ।दीवाली ही दर्शोती हैं :-असतो मा सद्गमय ,तमसो मा ज्योतिर्गमय।दीवाली को  स्वच्छता व प्रकाश का प्रतीक माना गया है । दीवाली को आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर आंतरिक प्रकाश ,अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य ,बुराई पर अच्छाई का उत्सव माना गया है और दूसरी तरफ दीवाली का धार्मिक महत्व हिंदू दर्शन ,क्षेत्रीय मिथकों , मान्यताओं और किंवदंतियों पर निर्भर करता है।

दीवाली को भारत के हिंदू ,सिक्ख, जैन समुदाय के साथ-साथ विशेष रूप से दुनिया भर में भी मनाया जाता है। जैसे:- दीवाली को नेपाल में तिहार के रूप में मनाया जाता है। यह भारत में दीवाली के साथ ही पांच दिन की समयावधि तक मनाया जाता है। मलेशिया में दीवाली का पर्व धार्मिक सद्भावना और धार्मिक जातीय समूहों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों का एक अवसर बन गया है। लिटल इंडिया में दीवाली की सजावट सिंगापुर में हिंदुओं के लिए एक विशेष वार्षिक उत्सव है। एशिया के परे ऑस्ट्रेलिया के मेलबार्न में भारतीय मूल के लोगों और स्थानीय लोगों के बीच सार्वजनिक रूप से मनाया जाता है ।संयुक्त राज्य अमेरिका के शहरों टैक्सास और सैन एन्टोनियो जैसे शहरों में समारोह का आयोजन किया जाता है।  लीसेस्टर ,यूनाइटेड किंगडम सबसे बड़ी दीवाली समारोह के लिए मेजबान की भूमिका निभाता है ।न्यूजीलैंड में दीवाली का पर्व दक्षिण एशियाई  प्रवासी के संस्कृतिक समूहों के बीच एक सार्वजनिक कार्य का काम करता है । इसके अतिरिक्त फिजी और अफ्रीका के   मॉरिशस और  रीयूनियन में भी हिंदुओं द्वारा दीवाली को मनाया जाता है।

इस प्रकार अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व भारतीय समाज में ही नहीं ,विदेशों में उल्लास, प्रेम व भाई चारे का संदेश फैलाता है। यह त्योहार सामूहिक एवं व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाया जाने वाला एक ऐसा विशेष पर्व है ,जो धार्मिक संस्कृतिक एवं समाजिक विशिष्टता रखता है। पर दुनिया के अन्य प्रमुख त्यौहारो के साथ ही दीवाली का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव चिंता जननीय हैं क्योंकि इस दिन वायु प्रदूषण और जलने  जैसी घटनाएं देखने को मिलती है। यह बात माननीय है कि दीवाली एक प्रकाश पर्व है ,पर इस दिन हमें कम से कम पटाखों का प्रयोग करना चाहिए ,क्योंकि इससे हम वायु प्रदूषण और कई होने वाली घटनाओं को रोक सकते हैं ,और यह कार्य प्रत्येक सामान्य नागरिक की हाथ में है तभी हम दीवाली को स्वच्छता और प्रकाश का पर्व कह सकते हैं ।।

— अमित डोगरा

अमित डोगरा

पी एच.डी (शोधार्थी), गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर। M-9878266885 Email- [email protected]