गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सवालों का तो मंजर है अभी तक l
कोई मुखिया निरुत्तर है अभी तक ।।

उसे इल्जाम का डर है अभी तक ।
कहीं सच्चा सुख़नवर है अभी तक ।।

ग़रीबी और बढ़ती जा रही है ।
यहाँ आबाद अंतर है अभी तक ।।

वहाँ भी देखिए साहब दिवाली ।
जहां इंसान बेघर है अभी तक ।।

वतन को छोड़, ढूढो काम तुम भी ।
यहां का हाल बदतर है अभी तक ।।

ऐ बादल तू बरस आकर किसी दिन ।
जमीं यह भी तो बंजर है अभी तक ।।

न जाने कितनी नदियां हैं समाईं ।
मगर प्यासा समंदर है अभी तक ।।

कटेंगे वो शज़र इस मुल्क में फिर ।
सुकूँ जिनसे मयस्सर है अभी तक ।।

लुटेगा देश कुछ दिन और शायद ।
तेरे हाथों में खंजर है अभी तक ।।

सिसकती भूख से , वो बस्तियां हैं ।
वतन का ये मुकद्दर है अभी तक ।।

नया कुछ भी नहीं पाया हूँ यारो ।
यहां भगवा में खद्दर है अभी तक ।।

— डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]

One thought on “ग़ज़ल

  • लीला तिवानी

    बहुत सुंदर और सटीक

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