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सरकार ने ही सिखाया था किसानों को पराली जलाना

दिल्ली मेट्रो में यमुना का पुल पार करते हुए पिछले एक दो दिनों से एक अजीब सा कोहरा आसमान में दिखाई दे रहा है। कहा जा रहा है यह कोहरा नहीं बल्कि हर वर्ष की तरह हरियाणा और पंजाब के किसानों द्वारा जलाई गई पराली का धुआं है, जो उड़कर दिल्ली में घुस गया और लोगों का जीना मुहाल कर दिया।

एक तो दिल्ली पहले से ही विश्व के प्रदूषित शहरों में गिनी जाती थी ऊपर से यह धुआं, अब क्या किया जाए? कुछ विकल्प पर गौर किया जाए या पांच-सात दिन बैठकर किसानों को कोसा जाए। क्योंकि सरकार तो इस बार भी कुछ कहने से रही, ऊपर से हरियाणा में चुनाव है भला ऐसे मौकों पर कौन अपना वोट बेंक खोएगा?

फोटो प्रतीकात्मक है। फोटो सोर्स- flickr

इस कारण आसानी से कहा जा सकता है कि नेताओं को अपने वोट बैंक की चिंता है, किसान को अपनी खेती और किसानी की चिंता है और दिल्ली निवासियों की चिंता है खुली सांस लेने की है।

वैसे केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर वर्ष अपने आंकड़ें जारी कर देता है। 2015 के आंकड़ों में भी बता दिया था कि

  • दुनियाभर में वर्ष 2015 में 90 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण से हुई है,
  • जिनमें अकेले भारत में 25 लाख मौते हुई थीं,
  • जिनमें ज़्यादातर मौतें अकेले दिल्ली में थीं।
  • पर क्या सभी मौतें हरियाणा-पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाने से हुई थीं? यह सवाल भी अपना सिर पकड़े बैठा है।

शायद ही इस सवाल का जवाब केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पूरी ईमानदारी दे पाए, क्योंकि धुंआ छोड़ती गाड़ी में बैठकर किसानों को प्रदूषण के लिए निशाना बनाना बेहद आसान सा काम है। मैं एक किसान का बेटा हूं। इस कारण चलो आज पूरी ईमानदारी से इस समस्या का हल ढूढ़ते हैं, ताकि जो भी दोषी होगा, उसे कोसने की बजाय जागरूक करने का काम किया जाए।

कब शुरू हुई पराली जलाने की परंपरा

दरअसल, अस्सी-नब्बे के दशक में इस बीमारी का जन्म हुआ, जो अब हर वर्ष महामारी का रूप धारण कर लेती है। उस दौरान राज्य सरकारों द्वारा किसानों को जागरूक करने का कार्य किया गया था। नेताओं में दूरदर्शिता की कमी थी, तो कृषि वैज्ञानिकों ने गॉंव-गॉंव जाकर बताना शुरू किया कि खेत खाली नहीं छोड़ने चाहिए, जल्दी से खेतों की सफाई की जाए, इससे फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीट भी मर जायेंगे और अगली फसल की बुआई भी जल्दी की जाएगी। यानि किसानों को पराली जलाने का काम सिखाया गया।

असल में सितंबर के बाद धान की फसल कटाई के बाद ही पराली जलाई जाती है। धान जिसके तुरंत बाद गेंहू की फसल की बुआई करनी होती है, उसके लिए खेत साफ होने चाहिए, तभी आगे की बुआई अच्छे से हो पाएगी। इससे पहले किसान हाथों से फसल काटता था, जिसके उपरांत पराली का इस्तेमाल या तो चारे के रूप में करते थे या फिर उससे काटकर सर्दियों में अपने पशुओं के नीचे डाल देते थे, जिसका बाद में बायो कम्पोस्ट के माध्यम से खाद बनाकर खेत में डाला जाता था। यह खेती के लिए तो अमृत होता ही था साथ ही प्रदूषण का भी कोई खतरा नहीं था।

अब वह कम्बाइन मशीन द्वारा फसल की कटाई कराता है, जिसमें धान की पराली को छोड़कर ऊपर के अनाज को ले लिया जाता है। पराली खेत में रहती है, फिर उसे सफाई के उद्देश्य से जला दिया जाता है।

क्योंकि अब अधिकांश किसान पशु भी सीमित संख्या में रखते हैं तो चारे की समस्या नहीं होती है। इसी कारण उस दौरान कृषि वैज्ञानिकों की यह युक्ति किसानों को भा गई और देखते-ही-देखते पराली जलाने का कार्य शुरू हो गया।

जब पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली और आस-पास के इलाकों में प्रतिवर्ष धुआं बढ़ने लगा, तो साल 2015 में सरकारों की आंखें खुली और आनन-फानन में एक आदेश जारी कर रोक लगाने का फरमान जारी कर दिया कि जो किसान फसल जलाते हुए पाए जाए उन पर अर्थदंड लगाया जाए।

सरकार ने ही पराली जलाना सिखाया और अब वही अर्थदंड लगा रही है

यानि जिस तरह सरकारों ने 90 के दशक में बिना सोचे पराली जलाना किसानों को सिखाया, उसी तरह अब यह आदेश करना कि पराली जलाने वाले किसान पर अर्थदंड लगाया जायेगा कहां तक सही है? इससे पता चलता है कि सरकारें इस गंभीर मुद्दे के प्रति बिलकुल उदासीन है, वरना किसानों की आर्थिक मदद की जाए, साथ ही पराली के निस्तारण के लिए किसानों से सलाह लेकर एक ठोस नीति बनाई जाए।

कुछ सालों पहले तक खेतों में काम करने वाले मजदूर अनाज या धान लेकर काम करते थे। आज किसानों को मजदूरी का भुगतान नकदी में करनी पड़ती है। इसी कारण अब किसान सोचते हैं कि पांच सौ से सात सौ रुपये में मज़दूरों को लाकर कई दिनों तक खेत साफ करने से बेहतर है कि अर्थदंड ही चुका देंगे, वह भी तब यदि कोई सरकारी कार्यवाही होगी।

कैसे निकलेगा समाधान?

  • अब इसका समाधान यह है कि सरकार और किसान को तालमेल बैठाना होगा,
  • किसानों के दिमाग से यह बात निकालनी होगी कि पराली जलाने से फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीट मर जाते हैं और खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ जाती है।
  • उन्हें यह बताना होगा कि इससे खेत में फसल को लाभ पहुंचाने वाले कीट और केंचुए भी मर जाते हैं।
  • साथ ही खेत की नमी कम हो जाती है।
  • इसके लिए किसानों को जागरूक करने के साथ कृषि वैज्ञानिकों को भी पराली के उपयोग का समाधान खाद बनाकर या इससे बिजली बनाकर या इसके अन्य सकारात्मक प्रयोग पर शोध करना होगा।

वरना हर वर्ष दस पांच दिन किसानों को कोसने का एक रिवाज़ सा बन जाएगा, उस किसान को, जिसके उगाये अन्न की बदौलत हम दिन रात मेहनत करते हैं।

राजीव चौधरी

स्वतन्त्र लेखन के साथ उपन्यास लिखना, दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स के लिए ब्लॉग लिखना