लघुकथा – गलती
“हैल्लो भाभी….घर कब आ रही हो?” गुंजन अपने भाभी को फोन पर पूछने लगी ।
“साहब क्या कर रहे हैं….जो आपको फोन करना पड़ा ?” भाभी थोड़े गुस्से में बोली ।
“भैया….? थोड़ी देर पहले ड्यूटी से आऐं हैं, लगता है पेंटिंग कर रहे हैं ।” गुंजन हँसते हुए बतायी ।
” तो आपने फोन क्यों किया..? फोन तो उनको करना चाहिए था ।” भाभी की बातों को सुनकर गुंजन का चेहरा उतर गया ।
“साॅरी भाभी…. लेकिन बताओ न कब आओगी ?” पुनः पूछने लगी ।
“मैं अब कभी नहीं आउँगी उस घर में, साहब को काम से फुर्सत मिले तब न ड्यूटी से घर , घर से ड्यूटी । बीवी कैसी है.. ठीक है नहीं है.. पूछने तक का समय नहीं । नौकरी, पेंटिंग, कहानी के सिवाय है ही कौन उनके जिन्दगी में, ऐसे बोरिंग इंसान के साथ अब नहीं रह सकती ।” भाभी की बातें सुनकर गुंजन को बहुत गुस्सा आया और दुःख भी हुआ।
“हाँ भाभी… भैया बहुत बोरिंग इंसान है । उनके लाइफ में है ही क्या ड्यूटी, पेंटिंग और कहानी… आप तो फ्री रहती हो न, कभी उनकी कहानी पढ़ी हो..? कभी गौर से देखी हो उनकी पेंटिंग्स को.. नहीं क्यों देखोगी, आपको इन सबके लिए वक्त मिले तब.. वक्त क्या समझ हो तब न देखोगी, भैया को बचपन से देखते आयी हूँ, माँ पापा के गुजरने के बाद भी मेरे लिए हँसते मुस्कुराते रहे लेकिन हँसते मुस्कुराते इंसान कब गंभीर हो गए पता भी नहीं चला, उनकी पेंटिंग्स और कहानियाँ शोषित पुरुष की दास्ताँ कहती है । कितना पीड़ा होता होगा उनको आपके बातों से, इस तरह के व्यवहार से फिर भी आपसे कुछ नहीं कहते क्योंकि जिद मैंने ही की थी आपको भाभी बनाने की, शादी से पहले भी आप लोग रिलेशन में रहे उस समय भी आप समझ नहीं पायी । आप ही ने उसे इस तरह बनने के लिए मजबूर किया है । जाने अनजाने में सही दिल बहुत दुखाया है आपने और आज भी वही गलती दोहरा रही हो….गलत सिर्फ पुरुष नहीं होते भाभी, कभी हमसे भी गलती हो जाती है… और गलती सुधारना हमें ही पड़ता है..अब आपकी मर्जी आगे की जिंदगी खुशी खुशी गुजारनी है या फिर घूट घूट कर….।” गुंजन रोते हुए फोन काट दी ।
–– भानुप्रताप कुंजाम ‘अंशु’