लघुकथा

अर्द्धांगिनी

सुबह सूरज़ की पहली किरण के साथ ही उठ जाना और अपने-अपने काम में लग जाना यही क्रम रोज़ का होता था उदय और नीना का। नीना एक घरेलू औरत थी वहीं उदय नौकरीपेशा वाला। परंतु उदय कभी नीना को घरेलू औरत नहीं मानता था वह हमेशा कहता कि घर में रहना और बच्चों को पालना बहुत मेहनत का काम है।

वह नीना की हर काम में मद्द करता, दोनों की आपस में ख़ूब बनती थी। यह सब देखकर आस-पास वाले और रिश्तेदार काफ़ी जलते थे। दोनों कहीं पर भी जाते तो साथ जाते वरना जाते ही नहीं थे। दुनिया क्या सोचती है इसकी परवाह उन्हें नहीं थी?

एक बार उदय की तबियत ज़्यादा ख़राब हो जाती है डाक्टर ने सब काम के साथ-साथ गाड़ी चलाने तक को मना कर दिया था। नीना जो घरेलू होने के साथ-साथ बाहर का काम भी उदय के साथ देखती थी। अब उसे किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा और बड़ी समझदारी से उसने सब संभाल लिया यहाँ तक कि अस्पताल से गाड़ी चलाकर घर आती और घर का सारा काम करके फिर वहीं जाती। दोनों अपने पुराने दिन याद करने लगते और सात फेरे जो उन्होंने साथ-साथ लिए थे वो भी याद करके मुस्कुरा लेते।

अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद घर में पहुँचकर एक दिन उदय ने नीना को अपने पास और प्यार से उसकी तरफ़ देखते हुए बोला “मेरी अर्द्धांगिनी बहुत बहादुर है और सबसे अलग भी”

“बस यही बात जो मेरे अर्धनारीश्वर की मुझे बहुत भाती है” कहकर! वह शर्मा जाती है और अपने हाथ से अपना मुँह ढँक लेती है।

 

मौलिक रचना

नूतन गर्ग (दिल्ली)

 

 

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक