एक फूल दो माली
पुराने समय की बात है, मेवाड़ के नगर सेठ का पुत्र “नीर ” बहुत सुंदर साहसी और कार्य में कुशल था। कोई भी कन्या उसको एक नज़र देखे तो मोहित जो जाये और उसको निहारती ही रहे। नगर सेठ को उसके विवाह की चिन्ता रहती थी। उसको कोई भी कन्या पसंद नहीं आती।
नीर को वन-भ्रमण का बहुत शौक था। जब भी समय मिलता ,वो निकल जाता। वहां वो बहुत समय बिताता। प्रकृति को घंटो निहारना, उनसे बातें करना उसे बहुत पसंद था। एक दिन उसको नदी किनारे एक कन्या दिखी, जिसको देखते ही उस पर मोहित हो गया लेकिन बात नहीं हो पायी। नगर लौटने के बाद भी वो उसी वन कन्या के ख्याल में खोया रहता।
अगली बार वो जब वन को गया तो नीर की मुराद पुरी हो गयी। वन कन्या के दीदार हुए और बात भी हो गयी। तब मालूम हुआ वो ऋषि कन्या है। नजदीक के वन में उनका आश्रम है। दीदार, मुलाकात, प्रेम में परिवर्तित हो गयी। समस्या यह थी की नगर सेठ और वन कन्या के पिता से बात कौन करे। नीर को अपने मित्र की याद आयी कि वो मदद कर सकता हैं। नीर अपने मित्र मनन के पास गया और सारी बात बताई। मनन उन ऋषि का शिष्य था उसको भी उस वन कन्या से प्रेम था। ऋषि को ये बात पता थी।
वो मनन मित्र और स्वयं में असमंजस की स्थिति में हो गया। नहीं समझ रहा कि क्या करें मित्र को प्रेम दिलाये या खुद अपना प्रेम पायें। इस से बचने के लिये वो नजदीक के ग्राम के पुरोहित कर्माकर जी के निवास पर गये। वो सिद्ध पुरूष थे, उनको दोनों की स्थिति का ध्यान था। वो ज्यादा बोलते नहीं थे। उन्होंने कहा ” यहाँ एक फूल दो माली” वाली बात है, लेकिन…… तुम दोनों को वो फूल नहीं प्राप्त होगा, उसको तो उसका माली बहुत पहले मिल गया और गयी वो अपने सही स्थान पर “।
दोनों मित्रों को समझ नहीं आया मर्म बात का। आ गये अपने-अपने नगर। बाद मैं मालूम हुआ कि उस वन कन्या का विवाह एक योग्य ऋषि से पहले ही हो गया और गयी वो उनके साथ।
दोनों निराश हो गये। समय के साथ सब ठीक हो गया और दोनों वन कन्या को भूल, अपने-अपने काम में व्यस्त हो गये।
— सारिका औदिच्य