ग़ज़ल
बिगाड़े है खुदा, बनाता भी तो है
निराशा में आशा, जगाता भी तो है।
भले ही कष्ट कितने वो दे दे हमें
हरिक का साथ पर निभाता भी तो है।
हमें वो उलझनों में डाले है मगर
सही रस्ता हमें दिखाता भी तो है।
सिखाता दूर रहना सबको इश्क से
चिरागे इश्क पर जलाता भी तो है ।
हरिक को सीख प्रेम की वो बांटता
भरी जो नफ़रतें, मिटाता भी तो है।
भले ही डूब जाए जीवन की नौका
भँवर से पार वो कराता भी तो है।
अलग अंदाज है उसका क्या कहें
रुलाता है वही, हँसाता भी तो है।
समझ आई मुझे हकीक़त ‘सोनिया’
गिराता है वही, उठाता भी तो है ।
— डाॅ सोनिया